Indira First woman prime minister in India: इंदिरा के रूप में मिली पहली महिला प्रधानमंत्री

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अंबाला। देश में तीसरे लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार का तो गठन हो गया, लेकिन गठन होने के चंद महीने बाद ही जिस तरह चीन ने भारत पर हमला किया उसने पंडित नेहरू को अंदर से हिला कर रख दिया। वो बीमारियों से ऐसे घिरे की राजनीतिक जीवन में सक्रिय वापसी नहीं कर सके। अंतत: वो 1964 में उनकी मृत्यु हो गई। यादों के झरोखे में झांक कर देखेंगे तो आप पाएंगे कि इस लोकसभा के कार्यकाल में बहुत कुछ पहली बार हुआ। पहली बार देश ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री देखा। पहली बार देश ने महिला प्रधानमंत्री देखा। पहली बार एक लोकसभा के कार्यकाल में पांच बार प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री तो बनीं, लेकिन उनके सामने एक साथ कई चुनौतियां भी सामने आर्इं।
-पंडित नेहरू के बाद गुलजारी लाल नंदा कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। उसके बाद देश की बागडोर संभाली लाल बहादुर शास्त्री ने। चीन के बाद पाकिस्तान ने भी हमला किया, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के कुशल नेतृत्व में पाक को मुंह की खानी पड़ी।
– शास्त्री जी ने ताशकंद समझौते में पाक को कड़ा सबक दिया, पर इस दौरान उनकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत भी हो गई। इसके बाद गुलजारी लाल नंदा एक बार फिर कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने।
– 1966 में इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। नेहरू के बाद कांग्रेस में खाली शुन्यता को भरने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने इंदिरा गांधी पर भरोसा जताया।
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इंदिरा को चुनौती देने के लिए कई दिग्गज पहुंचे थे संसद
देश चलाना इंदिरा गांधी के लिए भी नया अनुभव था। 1962 के आम चुनाव के बाद कुछ संसदीय सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे। 1963 में समाजवादी दिग्गज डॉ. राममनोहर लोहिया फरुर्खाबाद से उपचुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा में पहुंचे थे। इसी तरह स्वतंत्र पार्टी के सिद्धांतकार मीनू मसानी गुजरात की राजकोट सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। 1964 में समाजवादी नेता मधु लिमये भी बिहार के मुंगेर संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव जीत गए थे। यानी इंदिरा गांधी को घेरने के लिए लोकसभा में कई दिग्गज पहुंच गए। इसी दौरान देश की राजनीति में एक घटना और हुई। सैद्धांतिक मतभेदों के चलते 1964 में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) का विभाजन हो गया। भाकपा से अलग होकर एके गोपालन, ईएमएस नम्बूदिरिपाद, बीटी रणदिवे आदि नेताओं ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का गठन कर लिया। यह घटनाक्रम ऐसा था जिसने आने वाले दिनों में इंदिरा गांधी को संसद में जबर्दस्त तरीके से चुनौती दी।

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