जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर जिस तरह भारतीय कूटनीति ने अपना लोहा मनवाया है वह लंबे समय के बाद देखने को मिला है। तमाम यूरोपियन देशों के अलावा अरब देशों ने भी जिस तरह का भारत का समर्थन किया है वह निश्चित तौर पर एक नए युग की शुुरुआत है। एक सॉफ्ट नेशन से आगे निकलते हुए भारत ने दुनिया के सामने खुद को मजबूती से पेश किया है। भारत ने साफ संकेत दे दिए हैं कि वह अपने मामले खुद निपटाने की न केवल शक्ति और सामर्थ्य रखता है, बल्कि दूसरे देशों के दखल को बर्दास्त भी नहीं करेगा। उधर, पाकिस्तान की हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली हो गई है। वह बौखलाहट में ऐसे नादान कदम उठा रहा है जिससे उसकी न केवल जगहंसाई हो रही है, बल्कि अंतरराष्टÑीय स्तर पर भी उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में उसे मंथन करने की जरूरत है कि वह बेवजह अपने नापाक कदमों से क्यों अपनी स्थिति को और अधिक खराब करने पर तुला है।
कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की बैठक पर पूरी दुनिया की नजर थी। पर बंद कमरे में बैठक बेनतीजा या बगैर किसी बयान के समाप्त हो जाने से इस विषय का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में जुटे पाकिस्तान और उसके सहयोगी देश चीन को एक बड़ा झटका लगा है। वैश्विक संस्था की 15 देशों की सदस्यता वाली परिषद के ज्यादातर देशों ने इस बात पर जोर दिया कि यह भारत और पाक के बीच एक द्विपक्षीय मामला है। इतना ही नहीं, बैठक के बाद यूएनएससी अध्यक्ष ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर मुद्दा यूएन में उठाने का कोई आधार नहीं है। बता दें कि यूएनएससी की यह महत्वपूर्ण बैठक चीन के अनुरोध पर शुक्रवार को बुलाई गई थी। यह पूरी तरह से एक अनौपचारिक बैठक थी। हाल ही में कश्मीर पर भारत सरकार द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण फैसले के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने चीन की यात्रा की थी और वहां चीन से अनुरोध किया था कि कश्मीर का मुद्दा यूएनएससी के सामने उठाए। चीन की अपनी मजबूरियां हैं। पाकिस्तान के साथ उसके कई हित जुड़े हैं। इसीलिए वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को नाराज करना नहीं चाहता। यही कारण था कि चीन ने यूएनएससी में कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया, लेकिन भारतीय विदेश नीति का लोहा मानना होगा कि चीन के अलावा किसी अन्य देश ने कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया है। हाल यह था कि इस बैठक के बाद कोई औपचारिक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी नहीं हुई। हालांकि बैठक के बाद संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जुन और पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोदी ने एक-एक कर टिप्पणी जरूर की, लेकिन उन्होंने संवाददाताओं का कोई सवाल नहीं लिया। सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में ज्यादातर का कहना था कि इस चर्चा के बाद कोई बयान या नतीजा जारी नहीं किया जाना चाहिए और आखिरकार यही हुआ।
यूएनएससी में चर्चा के बाद सबसे अधिक बातें संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन के शानदार और बेहद प्रभावशाली प्रेस ब्रीफिंग की हो रही है। अकबरुद्धीन ने बता दिया कि क्यों भारतीय विदेश मंत्रालय का उन्हें बैक बोन कहा जाता है। अकबरुद्धीन ने अंतराष्टÑीय मीडिया से कहा कि यदि राष्ट्रीय बयानों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इच्छा के रूप में पेश करने कोशिश की जाएगी तो वह भी भारत का राष्ट्रीय रुख सामने रखेंगे। उनका इशारा चीन और पाकिस्तान के बयानों की ओर था। सुरक्षा परिषद के ज्यादातर सदस्यों ने माना कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा है और उन दोनों को ही आपस में इसका समाधान करने की जरूरत है। यह कश्मीर का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की मंशा रखने वाले पाकिस्तान के लिए एक झटका है।
बंद कमरे में हुई सुरक्षा परिषद की इस बैठक से पहले पाकिस्तान को कई झटके लगे हैं। उसने इस विषय पर खुली बैठक की मांग की थी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के भारत के कदम पर सुरक्षा परिषद में चर्चा की मांग की थी, लेकिन सुरक्षा परिषद ने एक अनौपचारिक और बंद कमरे में बैठक की। कुरैशी ने यह भी अनुरोध किया था कि पाकिस्तान सरकार के एक प्रतिनिधि को बैठक में हिस्सा लेने दिया जाए। उस अनुरोध को भी नहीं माना गया क्योंकि चर्चा बस सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों के बीच थी।
यह भारतीय कूटनीति की एक ऐसी जीत है जिसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा। ऐसा पहली बार हुआ है कि चीन को छोड़कर सभी सदस्य देशों ने कश्मीर के मुद्दे पर एक सुर में भारत का साथ दिया है। यह भारत की उस तैयारी का नतीजा कहा जा सकता है जब संसद में अनुच्छेद 370 हटाए जाने की घोषणा करने से ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के नेतृत्व में भारतीय विदेश मंत्रालय ने पूरे दलबल के साथ अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी और खासकर चीन को लेकर रणनीतिक खाका तैयार कर लिया था। भारत को पता था कि इस नए बदलाव से सबसे ज्यादा तिलमिलाहट चीन और पाकिस्तान को होगी। वही हुआ भी। पाकिस्तानी विदेशी मंत्री भागकर सीधे चीन पहुंचे और वहां अपना दुखड़ा रोया। विदेश मंत्री एस जयशंकर राजनीति में आने से पहले भारत के विदेश सचिव रह चुके हैं और पुराने कूटनीतिज्ञ भी हैं। मौजूदा विदेश सचिव विजय गोखले के साथ विदेश मंत्री की समझ और समन्वय दोनों ही काफी अच्छी है। यही वजह है कि चीन के साथ दोस्ताना रिश्ते के महत्व को बताने के लिए विदेशमंत्री खुद दौरे पर गए। पर चीन की तरफ से सकारात्मक संकेत नहीं मिलने के बाद ही भारत ने अपना पूरा फोकस अन्य देशों पर रखा। इसमें साथ मिला संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन का।
निश्चित तौर पर भारतीय रणनीतिकारों को पाकिस्तान और चीन के अगले कदम की भनक लग गई थी। पाकिस्तान की कोशिश जम्मू-कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन अंतत: वह नाकाम रहे। पाकिस्तान का हाल यह रहा कि अब भारत ने पाकिस्तान की कोशिशों को क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतारा बताया है। भारत की इस कूटनीति को जमकर अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिल रहा है। भारत ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के पाक अधिकृत कश्मीर में जाने, पाकिस्तान के हुक्मरानों द्वारा तनाव पैदा करने की कोशिश और आतंकवाद को शह देने के आरोप लगाए हैं। जिस तरह भारत के आरोप को अमेरिका, फ्रांस, रूस जैसे देशों ने गंभीरता से लेते हुए पाकिस्तान को संयम बरतने के लिए कहा है, वह अपने आप में एक ऐसी अंतरराष्टÑीय जीत है जिसके जरिए भारत अपनी विदेश नीति को और मजबूती प्रदान कर सकता है।
यूएनएससी में पाकिस्तान की हार का ही नतीजा है कि पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर की सीमा पर सीज फायर का उल्लंघन शुरू कर दिया है। पाकिस्तान की मंशा क्या है यह पूरी तरह स्पष्ट है। भारत भी जवाबी कार्रवाई कर रहा है। इसमें पाकिस्तान को काफी नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के हुक्मरानों को जरूर मंथन करना चाहिए कि वह बेवजह की लड़ाई में क्या पा सकेगा। पाकिस्तान की अंदरुनी हालत बद से बदत्तर होती जा रही है। अंतरराष्टÑीय स्तर पर भी वह अलग थलग पड़ चुका है। ऐसे में भारत से और दुश्मनी बढ़ाकर वह क्या हासिल कर लेगा? फिलहाल भारत की अंतरराष्टÑीय स्तर पर कूटनीति जीत के बड़े मायने हैं। आने वाले दिनों में यह जीत भारत की विदेश नीति को और अधिक साशक्त करेगी इसमें दो राय नहीं।
(लेखक आज समाज के संपादक हैं )
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