Huzur rules are meant to be broken only ! हुजूर नियम तो तोड़ने के लिए ही बनते हैं!

0
367

वो नियम ही क्या जिसे तोड़ा न जाए। वो जुर्माना ही क्या जिसे वसूला न जाए। इसी दोनों फॉर्मुले पर इन दिनों पूरा भारत चल रहा है। केंद्र सरकार ने ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करने पर अचानक इतना बड़ा निर्णय ले लिया है कि यह किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा है। हर तरफ इसी भारी भरकम जुर्माने की चर्चा चल रही है। होड़ इतनी है कि हर दिन खबरें आ रही हैं कि सबसे अधिक जुर्माना किसका और कितना हुआ है। पर जरा मंथन करिए, आखिर क्यों केंद्र सरकार के इन नियमों को तमाम राज्य मानने से इनकार कर रहे हैं। दूसरे दलों द्वारा शासित राज्यों की स्थिति तो समझ में आ रही है, पर जरा मंथन करिए केंद्र द्वारा बनाए गए इस नियम को मानने से इनकार करने में क्रांति का नेतृत्व बीजेपी शासित प्रदेश ही क्यों कर रहे हैं।
एक सितंबर को ट्रैफिक को लेकर नए नियम लागू हुए और 10 सितंबर तक इसका तोड़ भी निकाल लिया गया। एक देश एक विधान का नारा देने वाली बीजेपी की केंद्र सरकार के साथ विडंबना यह रही है कि इतनी महत्वाकांक्षी योजना को वह अपने ही राज्यों में लागू करवाने में कामयाब नहीं हो पा रही है। हाल यह है कि सबसे पहले गुजरात सरकार ने ही इस नियम को मानने से इनकार कर दिया और इसके लिए तोड़ निकाल लिया। प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने तो पहले इस नियम की समीक्षा करवाई। फिर जिस तरह भारी भरकम जुर्माना लगाया गया था उसी तरह भारी भरकम छूट भी दे दी। गुजरात सरकार ने तो कई नियमों में नब्बे प्रतिशत की छूट दे दी है। गुजरात सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम ने मंथन करने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सच में यह केंद्र सरकार का एक अव्यवहारिक फैसला है।
भारत में हर दिन सैकड़ों सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। वर्ष 2018 के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में सड़क दुर्घटना में मरने वालों की संख्या 1 करोड़ 88 लाख थी। यह आंकड़ें हैरान करने वाले हैं। दुनिया के किसी देश में इतनी बड़ी संख्या में लोग सड़क दुर्घटना में नहीं मरते हैं। जब इन दुर्घटनाओं पर मंथन करेंगे तो कुछ सामान्य बातों को आप समझ पाएंगे कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में भारत में सड़क दुर्घटनाएं क्यों होती हैं। ट्रैफिक नियमों की अनदेखी, रोड सेफ्टी नियमों की अनदेखी, लोगों की लापरवाही, सरकार का रवैया, पुलिस कर्मियों और ट्रैफिक कर्मियों की अवैध कमाई, अनट्रेंड ड्राइवस , जागरूकता का आभाव जैसे तमाम कारण आपको मिलेंगे जिससे कहीं न कहीं आप दो चार होते होंगे। यही सब कारण सबसे प्रमुख है जिसके कारण भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है।
अब एक बड़े ही दिलचस्प आंकड़े से आपको रूबरू करवाता हूं, ताकि आप मंथन कर सकें कि आखिर इस तरह के कड़े नियमों की जरूरत क्यों है। दरअसल हाल ही में दिल्ली पुलिस ने सड़क दुर्घटनाओं को लेकर एक रिपोर्ट पेश की है। यह रिपोर्ट कहती है कि साल 2018 में दिल्ली में सड़क हादसों के दौरान कुल 1690 लोगों की मौत हुई है। जबकि 2017 में यह आंकड़ा 1584 का था। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में साल 2018 में कुल 6515 रोड एक्सीडेंट हुए हैं। इनमें 6086 लोग घायल हुए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल हादसों में 45.86 फीसद पेडेस्ट्रियन्स की मौत हुई है। वहीं, दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा जान स्कूटर और मोटरसाइकिल राइडस की हुई है। कुल हादसों में 33.72 फीसद स्कूटर और मोटरसाइकिल राइडर्स की मौत हुई है। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि दिल्ली में होने वाले हादसों का सबसे ज्यादा जिम्मेदार हरियाणा में रजिस्टर्ड हुई गाड़ियां हैं। 1657 मौतों में 150 हादसे हरियाणा में रजिस्टर्ड हुई गाड़ियों के कारण हुए हैं।
यह आंकड़ें सिर्फ यह बताने के लिए दे रहा हूं ताकि आप ठीक से मंथन कर सकें कि आखिर ऐसा क्यों है कि हर दिन बढ़ रही दुर्घटनाओं के प्रति सरकार का रवैया किस तरह का है। दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट कहती है कि सबसे अधिक एक्सीडेंट हरियाणा नंबर की गाड़ी से हो रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार के जब कड़े ट्रैफिक नियम लागू हुए हैं तो हरियाणा में अभी जागरूकता अभियान चलाने की बात कही जा रही है। सिर्फ हरियाणा ही नहीं झारखंड, महाराष्टÑ, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्य भी इस कड़े नियम को लागू करने में आनाकानी कर रहे हैं। एक तरफ जहां केंद्र सरकार भारत में ट्रैफिक नियमों को लेकर अपने सबसे बड़े और सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर सामने आई है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी शासित प्रदेश ही इन नियमों को अपने यहां लागू करने में उदासिनता दिखा रहे हैं। झारखंड, महाराष्टÑ और हरियाणा की तो मजबूरी है कि अगले ही महीने इन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं ऐसे में यहां की सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाह रही है। राज्य सरकारों को इस बात का भय है कि कहीं वोट बैंक न खिसक जाए, क्योंकि इन राज्यों में सबसे अधिक वोटर युवा हैं और ट्रैफिक नियमों को लेकर सबसे अधिक पंगा भी इन्हीं युवाओं से होता है। पर मंथन करने की जरूरत है कि क्या सिर्फ वोट बैंक की सियासत को देखते हुए ही नियमों को लागू या न लागू करने का फॉर्मुला अमल में लाया जाए। या फिर इससे ऊपर भी कुछ और है।
दरअसल केंद्र सरकार ने अब तक की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना तो लागू कर दी, लेकिन इसके दुष्प्रभावों पर अधिक ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि केंद्र सरकार के अपने नियम ही अब बैक फायर करने लगे हैं। सिर्फ विदेश की नकल करके हम व्यवहारिक नहीं बन सकते हैं। जिन देशों में ट्रैफिक को लेकर भारी भरकम जुर्माना का प्रावधान है वहां की जमीनी हकीकत को भी देखने की जरूरत है। वहां लोगों को टैÑफिक को लेकर मिल रही सुविधाओं का भी अध्ययन करने की जरूरत है। हर साल अरबों रुपए टैक्स के रूप में लेने वाली भारत सरकार उस दिशा में कितने कदम उठाएगी इसका भी जिक्र किया जाना जरूरी है। हां यह सच है कि भारत में अस्सी प्रतिशत वाहन और वाहन चालक नियमों के उलट ही चलते हैं। पर भारत में ही कुछ राज्य ऐसे हैं जहां ट्रैफिक नियमों को लेकर इतने सख्त प्रावधान हैं कि वहां पहुंचते ही चालक अपने आप ड्राइविंग के सारे नियम कायदे फॉलो करने लगते हैं। तमिलनाडु और चंडीगढ़ के उदाहरण से हम इसे बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। यहां हाई बीम पर गाड़ी चलाने पर भी कार्रवाई का प्रावधान है। इन दोनों जगहों पर किसी को अपना लाइसेंस बनावाने के लिए तमाम टेस्ट पास करने होते हैं। गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन से लेकर तमाम अन्य नियमों को भी कड़ाई से लागू किया गया है। ऐसे में क्या दूसरे राज्य अपने यहां कड़ाई नहीं कर सकते हैं। पर विडंबना देखिए दूसरे राज्यों में ट्रैफिक को लेकर राज्य सरकारें बेहद कैजुअल एटिट्यूट में रहती हैं। वहां आराम से दोनों पैरों और हाथ से विकलांग का भी अगर आप ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना चाहें तो आराम से बन सकता है। बीस से तीस साल पुरानी गाड़ियों का भी फिटनेस सर्टिफिकेट और प्रदूषण सर्टिफिकेट बन सकता है। दो तरफा मंथन करने की जरूरत है कि आखिर केंद्र सरकार को इतना हेवी फाइन का फैसला क्यों करना पड़ा और क्यों राज्य सरकारों द्वारा इतना कैजुअल एटिट्यूट है। केंद्र सरकार को सीधे लोगों पर जुर्माना लगाने से बेहतर है कि राज्य सरकारों पर पेंच कसे। पहले से जो नियम लागू हैं अगर उनका ही सही तरीके से पालन करवा लिया जाए तो इस तरह की नौबत नहीं आएगी। सिर्फ नियम लगा देने से ही कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि नियम तो तोड़ने के लिए ही बनते हैं। जैसा की गुजरात के बाद सभी राज्य कर ही रहे हैं। ऐसे में मंथन करने की जरूरत है कि आने वाले दिन में भारी जुर्माना एक हास्यास्पद फैसला न बन जाए।

[email protected]

(लेखक आज समाज के संपादक हैं)

SHARE