How much Congress can inspire the public: जनता को कितना प्रेरित कर पाएंगे कांग्रेस के प्रेरक

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लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की भी उतनी ही अहमियत होती है, जितना सत्तापक्ष की होती है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज मुख्य विपक्षी की भूमिका में है। भविष्य में यदि जनता को उसकी विचारधारा पसंद आई तो वह सत्तासीन भी हो सकती है। यह लोकतांत्रिक परंपराओं और प्रक्रियाओं का हिस्सा है। भविष्य में जो हो, पर फिलहाल कांग्रेस जनों का मनोबल पहले जैसा नहीं दिखता। लगातार विभिन्न चुनावों में हार ने कार्यकर्ताओं के हौसले को पस्त किया है। हार नहीं मानना और हौसला रखना फितरत होना चाहिए, के तर्ज पर कांग्रेस फिर से खुद को खड़ा करने की कोशिश कर रही है। फिलहाल पार्टी ने यह फैसला लिया है कि सबसे पहले संगठन को मजबूत करना है और पार्टी को पब्लिक से कनेक्ट करने की योजना पर काम करना है। शायद यही वजह है कि संगठन ने प्रेरकों की नियुक्ति का निर्णय लिया है। यह पार्टी हित के लिए तो बेहतर है, पर सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के प्रेरक पार्टी के प्रति जनता को प्रेरित कर पाएंगे? जानकार मानते हैं कि इस सवाल का जवाब ढूंढ़े बगैर पार्टी लिए कोई ठोस अभियान चला पाना आसान नहीं है। बीते दिनों नई दिल्ली में हुई कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में लिए गए फैसलों से कांग्रेस जनों में खुशी और उत्साह का माहौल है। यदि यह माहौल इसी तरह कायम रहता है तो पार्टी भविष्य में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।
वैसे कांग्रेस के हितैषी चाहते हैं कि कांग्रेस मजबूत बने। वह न सिर्फ सत्ता और कुर्सी के लिए बल्कि देश के लिए। मौजूदा हालात को देखकर कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगाई जाने लगी हैं। कांग्रेस के शुभचिंतक चाहते हैं कि पार्टी कोई भी अभियान शुरू करने से पहले अपनी वैचारिकी को स्पष्ट करे। यानी कांग्रेस को पहले धारणा के स्तर पर लड़ना होगा। मौजूदा नैरेटिव को बदलने की पहल करनी होगी। उसके बाद ही उसका कोई एजेंडा काम आ सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि केंद्र की भाजपा नीत एनडीए सरकार अपने जनादेश का खतरनाक तरीके से इस्तेमाल कर रही है और कांग्रेस के संकल्प व संयम की परीक्षा ले रही है। सवाल है कि कांग्रेस यह परीक्षा क्यों दे रही है? उसकी क्या बाध्यता है कि वह सिर्फ सरकार के तय किए एजेंडे पर प्रतिक्रिया देने और अपना बचाव करने में लगी है? वह क्यों नहीं ऐसी पहल कर रही है कि मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए बनाए गए लोकप्रिय विमर्श को बदला जाए? ध्यान रहे कांग्रेस या किसी दूसरी विपक्षी पार्टी की सबसे बड़ी समस्या यह नहीं है कि उन्हें बहुत कम सीटें मिली हैं और भाजपा को बहुत बड़ा बहुमत मिला है। भारतीय संसद में थोड़े से अपवादों को छोड़ कर विपक्ष हमेशा सिमटा ही रहा है पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि सरकार के सामने विपक्ष की बोलती बंद हो जाए। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि सरकार और सत्तारूढ़ दल ने धारणा के स्तर पर विपक्ष को पराजित किया हुआ है। उसके बारे में यह धारणा बनवाई गई है कि सारे विपक्षी नेता चोर हैं। मीडिया, सोशल मीडिया और भाषणों के जरिए पूरे देश में यह बात स्थापित कराई गई है कि विपक्ष के सारे नेता चोर हैं। वे या तो जेल में हैं या जेल जाने वाले हैं। जो जेल में नहीं हैं वे जमानत पर बाहर हैं। यह काम एक पार्टी के तौर पर सिर्फ भाजपा नहीं कर रही है, बल्कि सरकार भी कर रही है। इस प्रचार का नतीजा यह हुआ है कि विपक्ष पूरी तरह से बैकफुट पर है।
बीते दिनों जिस वक्त सोनिया गांधी कांग्रेस नेताओं के साथ दिल्ली में मीटिंग कर रही थीं, उसी वक्त प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के अफसर डीके शिवकुमार की बेटी ऐश्वर्या से पूछताछ कर रहे थे। कांग्रेस के संकटमोचक और कर्नाटक के ताकतवर नेता डीके शिवकुमार को अगस्त में ही ईडी ने गिरफ्तार किया था। ठीक उसी वक्त रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के जमानत पर छूटे बाकी नेताओं को जेल भेजे जाने की जानकारी दे रहे थे। सोनिया गांधी ने मीटिंग में ललकारते हुए कांग्रेस नेताओं का जोश बढ़ाने की कोशिश तो की ही बंद वातानुकूलित कमरे की राजनीति से बाहर निकलने की नसीहतें भी लगातार देती रहीं। साथ ही, सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेताओं को पार्टी की दमदार वापसी के लिए एक मास्टर प्लान भी सुझाया। सोनिया गांधी की अगुवाई में कांग्रेस पब्लिक को कनेक्ट करने की योजना बना रही है। सोनिया गांधी ने कांग्रेस को फिर खड़ा करने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है जिसमें कई कार्यक्रम हैं। उन्हीं में से एक है, प्रेरकों की नियुक्ति। ये प्रेरक कांग्रेस के नेताओं को प्रशिक्षित करेंगे ताकि वो राजनीतिक विरोधियों से मुकाबले के लिए तैयार हो सकें। ये प्रेरक कांग्रेस के एजेंडे पर ही काम करेंगे। प्रेरकों का कामकाज जनता के बीच जाकर कांग्रेस की नीतियों को बताना होगा। कांग्रेस में अब तक सेवा दल का कंसेप्ट रहा, लेकिन पार्टी के भीतर पहली बार ऐसी कोई नियुक्ति होने जा रही है। कांग्रेस के केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद से लगातार महसूस किया जाता रहा है कि पार्टी का काडर बेस खत्म हो चला है। चुनावों के वक्त एकतरफ जहां बीजेपी के पन्ना प्रमुख लोगों को घरों से बुलाकर लाते हैं और वोट दिलवाते हैं, वहीं कांग्रेस को बूथ एजेंट तक के लिए कई जगह जूझना पड़ता है। बताते हैं कि डिवीजन स्तर पर कांग्रेस तीन प्रेरक नियुक्त करेगी और उनमें से एक एक महिला प्रेरक जरूर होगी। महिला आरक्षण की पक्षधर कांग्रेस ने अभी तक यही एक तयशुदा फैसला लिया है। प्रेरकों की जो टीम बनेगी उसमें एसटी, एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय से बैकग्राउंड प्रतिनिधि भी होंगे। चार से पांच जिलों को मिला कर एक डिवीजन बनाया जाएगा।
दरअसल, सोनिया गांधी चाहती हैं कि कांग्रेस किसी आंदोलनकारी एजेंडे के साथ उतरे। पर सवाल है कि आंदोलनकारी एजेंडा लेकर लोगों के बीच जाएगा कौन? कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने अपने जीवन में किसी किस्म का आंदोलन कभी किया ही नहीं है। वे जमीनी संघर्ष और जमीनी राजनीति के दांव पेंच से परिचित नहीं हैं। वे ड्राइंग रूम की राजनीति में माहिर खिलाड़ी हैं और वहां बैठ कर एक दूसरे को निपटाने की रणनीति बेहतर बना सकते हैं। उनसे सड़क पर उतर कर आंदोलन करना संभव नहीं हो पाएगा। दूसरे, जो बचे हुए नेता हैं उनको लग रहा है कि किसी तरह से भाजपा में शामिल होने का जुगाड़ लग जाए तो सत्ता में हिस्सेदारी मिल जाए। इसलिए भी वे खुल कर सरकार के खिलाफ हमलावर होने की बजाय सरकार के कामकाज में सफलता के बिंदु तलाशने में जुटे हैं ताकि वहां तक का सफर आसान बना सकें। इसके बाद कुछ नेता बचते हैं तो उनको लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि सरकार के खिलाफ ज्यादा सक्रियता दिखाई तो लालू प्रसाद या पी चिदंबरम वाली गति को प्राप्त हों। इसलिए वे भी ट्विट आदि करके अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं। ऐसे नेताओं की फौज लेकर कांग्रेस या कोई भी दूसरी विपक्षी पार्टी सरकार से कैसे लड़ेगी? सरकार ने उनके बारे में जो धारणा बनवाई है, वे उसका जवाब नहीं दे पा रहे हैं तो अपने किसी एजेंडे पर लोगों की धारणा बनवाने का काम उनसे कैसे होगा? वे तो लोगों को आंखों देखी पर यकीन नहीं दिला पा रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपी नेता एक-एक करके भाजपा में शामिल हो रहे हैं। जिन नेताओं के खिलाफ कांग्रेस की कथित भ्रष्ट सरकार ने मुकदमे कायम किए थे और खुद भाजपा नेताओं ने जिनको चोर कहा था वे भी भाजपा में शामिल हो गए हैं।  बैठक के आखिर में सोनिया गांधी ने जोर देकर कहा कि कांग्रेस को अपनी विरासत को बीजेपी को नहीं हड़पने देना चाहिए, हालांकि ये सलाह बहुत देर से आई। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी के पास अपने ‘गलत’ उद्देश्यों के लिए महात्मा गांधी, सरदार पटेल और बीआर अंबेडकर जैसे महान प्रतीकों के संदेशों को अपने अनुसार बदलने के तरीके हैं। बहरहाल, अब देखना यह है कि कांग्रेस प्रेरक जनता को पार्टी के लिए कितना प्रेरित कर पाते हैं?
(लेखक आज समाज के समाचार संपादक हैं।)
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