Government should not see the criminal with political eye: अपराधी को सियासी चश्मे से न देखें सरकार!

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20वीं सदी में अफ्रीका में दबे कुचले अश्वेतों के अधिकारों के आंदोलन की वकालत करते वक्त बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी पर हमले हुए। उन्होंने इन हमलों की प्रतिक्रिया में कहा कि पीड़ितों के पक्ष में डटकर खड़ा होना ही सच्ची सेवा है। पीड़ित की आवाज को दबाने वालों का समर्थन करना भी पाप है। वेद से रामायण तक हिंदू धर्मग्रंथों का सार यही है कि पीड़ितों की सहायता करने से बड़ा कोई धर्म नहीं और पीड़ा पहुंचाने से बड़ा कोई पाप नहीं है। इस्लाम में रहमत को सबसे ऊंचा दर्जा दिया गया है। ईसाइयत का आधार ही गरीबों एवं मजलूमों की सेवा है। सिख धर्म का अभ्युदय भूखों को खाना खिलाने और पीड़ा देने वालों से लड़ने से हुआ है। सभी धर्म मजलूमों के पक्ष में खड़े होने पर ही आधारित हैं। कुछ सालों से हमें उलट देखने को मिल रहा है। हम मजलूमों को भी अपने हानि लाभ और सियासी विचारधारा के चश्मे से देखने लगे हैं। कोई अपराध या कुकृत्य अगर हमारी विचारधारा का व्यक्ति करता है, तो हम उसे न्यायोचित ठहराने लगते हैं। यहां तक कि बलात्कार का शिकार हुई बेटियों के मामले में तो हम उनका ही चरित्रहनन करने लग जाते हैं।

डेढ़ साल पहले जब कठुआ (जम्मू-कश्मीर) के मंदिर में आठ साल की बच्ची के साथ वहां के पुजारी सहित आधा दर्जन पुलिस और राजस्व के मुलाजिमों ने गैंग रेप किया, तब स्थानीय पत्रकारों से लेकर सत्तारूढ़ भाजपा के उपमुख्यमंत्री कवींद्र गुप्ता ने आरोपियों के समर्थन में रैली कर पुलिस की कार्यवाही का विरोध किया। स्थानीय पत्रकारों ने तो सियासी चश्मे से कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश की और आरोप पत्र दाखिल करने जा रही पुलिस का रास्ता रोका। देश के एक बड़े अखबार और चैनल ने तो सबूतों को फर्जी बताकर महिला जांच अधिकारी डीएसपी श्वेतांबरी शर्मा और वकील दीपिका राजावत का ही चरित्रहनन कर दिया। ह्यहिंदू एकता मंचह्ण के बैनर तले बड़ी रैली की गई, जिसमें भाजपा के तीन मंत्रियों सहित स्थानीय वकील और पुजारियों ने पुलिस जांच को हिंदुओं की अस्मिता पर हमला बताया। पुलिस अधिकारी और वकील पर जानलेवा हमला भी हुआ। पीड़ित बच्ची को इंसाफ के लिए आधी रात कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत तमाम संगठनों ने कैंडल मार्च निकाला। हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शमिंर्दा होना पड़ा। अप्रैल 2018 में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने आठ वर्षीय बच्ची की गैंगरेप के बाद हत्या को मानवता के लिए ‘डरावना’ बताया। अपराध और अपराधियों को सियासी चश्में से देखने के कारण इंसाफ मिलने में भारी दिक्कतें पेश आईं।

पिछले तीन सालों में तमाम रसूखदारों के चाल चरित्र और चेहरे सामने आए हैं। यूपी के उन्नाव जिले से भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर की घिनौनी हरकतों का शिकार लड़की पुलिस, समाज, स्थानीय मीडिया और सरकार तक बिलखती रही मगर किसी ने मदद नहीं की। पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री भाजपा नेता चिन्मयानंद पर चारित्रिक पतन और यौन शोषण के आरोप लंबे समय तक लगते रहे मगर जांच अधिकारी से लेकर सरकार तक नतमस्तक रही। दो साल पहले जब गुरमीत राम रहीम को अपनी शिष्याओं के साथ बलात्कार के मामले में सजा सुनाई गई, तब भी सियासी साजिश के सवाल उठे। गुरमीत ने 2014 के चुनाव में भाजपा को समर्थन किया था। एक और सियासी रसूख रखने वाले दिल्ली के शनिधाम के बाबा दाती के खिलाफ एक युवती ने बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराया। आपको याद होगा, जब देश में चारो ओर आसाराम की जय जयकार हो रही थी, उस वक्त मीडिया ने उनकी यौन मरीचिका का शिकार हुई लड़की का दर्द सामने लाकर कथित संत का चोला उतारा दिया। सभी घटनाओं में भक्तों ने आरोप लगाया कि भगवा चोलाधारी होने के कारण विरोधी दल साजिशन उन्हें फंसाने में लगे हैं। एक दल विशेष के लोग आरोपियों के बचाव में एकजुट दिखे।

यह कुछ घटनायें हैं। 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप के बाद जस्टिस वर्मा आयोग की सिफारिशों के मुताबिक एंटी रेप ला लाया गया था। आईपीसी और सीआरपीसी में तमाम बदलाव हुए थे। कानून को सख्त करके बलात्कार रोकने को नए कानूनी प्रावधान किए गए। इतनी सख्ती और जनाक्रोश के बावजूद बलात्कार के मामले नहीं रुके। शीर्ष और संवैधानिक पदों पर बैठे या रह चुके जिम्मेदार लोगों पर बलात्कार के आरोप सामने आये हैं। इस वक्त हालात ये हैं कि देश में हर 12 मिनट पर एक लड़की बलात्कारियों का शिकार हो रही है। उसके बाद उसे अपनी एफआईआर दर्ज करवाने के लिए न जाने कितनी पीड़ा सहनी पड़ती है। उन्नाव रेप केस हो या शाहजहांपुर का चिन्मयानंद मामला, सभी में पीड़िताओं को पहले तो एफआईआर दर्ज कराने के लिए न जाने क्या क्या खोना पड़ा। अदालत की सख्ती के कारण जब मामला दर्ज हुआ तो पुलिस और सत्तारूढ़ सियासी दल के लोग रेपिस्ट के बचाव में ऊल जुलूल सफाइयां देते दिखे। उन्नाव रेप केस के गवाहों को मौत की नींद सुला दिया गया और पीड़िता के पिता समेत तमाम परिजनों पर झूठे केस लाद दिये गये। चिन्मयानंद का शिकार लड़की अपनी जान बचाने को छिपती घूम रही है। उसे हाईकोर्ट में एफआईआर दर्ज कराने के लिए खुदकुशी की बात कहनी पड़ी। सत्ता इतनी भी बेशर्म हो सकती है, हमने पहली बार देखा है।

इन घटनाओं में यह भी देखने को मिला कि आरोपियों को जेल में ऐसे रखा जा रहा है, जैसे वे जेल प्रशासन के मेहमान हैं। उनकी मर्जी के मुताबिक सुविधाएं और तमाम इंतजाम किये गये हैं। सुशासन और पारदर्शी ईमानदार निष्पक्ष कार्यवाही करने की बातें सिर्फ ढकोसला हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा दिया था मगर उनकी सरकार के ही कुछ लोग इस नारे को खोखला करने में जुटे हैं। हालात यह हैं कि न बेटी बच रही है और न पढ़ पा रही है। परिजन बच्चियों के सकुशल घर पहुंचने तक चिंतित मिलते हैं। इसका कारण वह पुलिस और जांच एजेंसी भी हैं, जो आपराधिक कानून के तहत सिर्फ कागजों में संचालित होती हैं, असल में वह सियासी तंत्र का हथियार हैं। यह तंत्र इतना सशक्त है कि उससे जुड़े लोग गुणदोष के आधार पर अपराधों की समीक्षा नहीं करते बल्कि सियासी फायदे देखते हैं। नतीजतन बलात्कारी और अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। पीड़ित दबाव में या तो आत्महत्या कर लेता है या बयान बदल देता है। चिन्मयानंद के मामले में पुलिस ने पीड़िता के रिश्तेदारों को गिरफ्तार करके आरोपी को ‘बारगेनिंग’ का मौका दे दिया है। यह नीति न तो सुशासन है और न ही सभ्य समाज का चेहरा।

बेटी चाहे हमारी हो या किसी दुश्मन की, उसका सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए, यह बात हमारे आदर्श शिवाजी महाराज ने बेहतरीन तरीके से समझाई थी। मीडिया, पुलिस और न्यायपालिका को चाहिए कि वह अपराधियों को सियासी फायदे के चश्में से न देखे। हमारे देश की सत्ता और दलीय भक्त जब इसे समझेंगें, तब ही बेटियों की आबरू बच पाएगी।

जयहिंद
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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

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