Good times have come! अच्छे दिन आ गए!

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तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुंह से निकल गया था अच्छे दिन आने वाले हैं। प्रबल भाजपाई दावेदार नरेन्द्र मोदी ने नारा कटती पतंग की शक्ल में लूट लिया। आकाशवाणी और गोदी नारदवाणी का अट्टहास बरगलाता रहा अब अच्छे दिनों में ही रहना है। अच्छे दिनों का कलियुग आ ही गया है। अजीब सी दिखती लेकिन स्वर्गसुविधायुक्त मुकेश अंबानी की मेनका दिखती एंटीलिया का विश्वामित्र मोह हर सरकार में होता है।
मनमोहन सिंह को तो आधुनिक कौटिल्य चमचे नौकरशाहों ने ही बनाया था। मोदी को गांधी और सरदार पटेल के मुकाबले ज्यादा कर्मठ गुजराती, नरेन्द्र नाम के कारण दूसरा विवेकानन्द और अटलबिहारी वाजपेयी से बड़ा लोकप्रिय स्थापित करने के लिए उद्योगपतियों ने कई टीवी चैनलों और अखबारों को ही खरीद लिया। वे संजय बनकर जनता को धृतराष्ट्र समझने लगे। बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों की जगह इतिहास में तो कूड़ाघर में तय होती है। वे अमरता के मरे हुए अहसास में जीते हैं। राष्ट्रपति भवन में अभियुक्त-उद्योगपतियों का भारतरत्नों के साथ एक निजी संस्था कॉरपोरेटी सम्मान हो।
सीबीआई और न्यायालय क्या कर लेंगे? जनता गांधी के गुरु-बंदरों की तरह आंखें, मुंह और कान ढककर बुरा देख, सुन या बोल नहीं रही है। गांधी के राजनीतिक शिष्य-बंदर गुरुघंटाल निकले। एक ने राजघाट में कहा, मैं अमेरिकी साम्राज्यवाद लाकर भारत में देसी तरह का विकास करूंगा। दूसरा कह आया, मैं गोधरा के शिकारों की आत्मा की शांति की प्रार्थना कर प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं। बापू के वंशजों ने उनका पितृतर्पण कर दिया। वे गांधी को उपनाम बनाकर बेचते रहे, मोहनदास करमचंद बनाकर नहीं। नए अच्छे दिनों में अदानी, अंबानी, मित्तल, जिंदल, अग्रवाल, रूइया, टाटा वगैरह सेवा के लिए नए नोबेल पुरस्कार योग्य इतिहास निर्माता हैं। कुदरती लोहा, कोयला, पानी, जंगल, सोना, चांदी, हीरा, मैग्नीज, बॉक्साइट वगैरह भारत में इफरात में है। जनता पुरखों की इस पूंजी को बंदरिया के बच्चे की तरह छाती से चिपकाए संतुष्ट रही।
उद्योगपतियों, नेताओं, नौकरशाहों और पत्रकारों की चैकड़ी ने इन पर कब्जा कर लिया। मलाई खुद खा ली। खुरचन जनता और किसानों में बांट दी। उन्होंने जनता के आंसुओं का स्वादिष्ट पेय बनाकर गटागट निगलना सीख लिया। आंसुओं से नमक निकाल दिया ताकि बजाना न पड़े। जनता अपना ही खून, पसीना और आंसू विदेशी बाजार में खरीदती रही। देश अपनी अस्मत और महिलाओं की अस्मिता लुटती देखता रहा। कांग्रेस सरकार सलीम की तरह कहती रही हे जनता, हम तुम्हें मरने नहीं देंगे। अमेरिका और उद्योगपति अकबर की तरह कहते रहे हे भारतीयों, हम तुम्हें जीने नहीं देंगे।
नदियों पर प्रदूषण और मिलावट के बांध कालिया नागों ने बनाए। जहर के कारण चिड़ियां तक फुर्र हो गईं। ऋषि और स्वामी जनता को आशा की मृगतृष्णा में गिराते योग, भोग और रोग को एक साथ साध रहे हैं। राजपुरुषों की दलाली करते, स्याह चरित्रों को सफेद बनाते, व्यापार करते प्रदूषित परम्परा का ही निर्वाह कर रहे हैं। पुष्पक विमान, गांडीव धनुष, पांचजन्य शंख, राणाप्रताप, शिवाजी, मंगल पांडे, भगतसिंह वगैरह के रास्ते चला इतिहास शंकराचार्यों, आसारामों, रामदेवों, निर्मल बाबाओं, कृपालु महाराजों, रामरहीमों, अखाड़ापतियों वगैरह की तिजोरियों में कुलबुला रहा है। हर व्यभिचारी वीर रस का रोल मॉडल है। अपरिचित पुत्र सार्वजनिक पिता का डीएनए टेस्ट कराते रहे। सत्तोत्तरी संतों का पौरुष-परीक्षण सफल हो रहा है। नौकरशाह शकुनि रिटायर होकर कौरव पक्ष के सलाहकार बन जाते हैं।
मोदी चीन, जापान वाली बुलेट ट्रेन दस वर्षों के फौरन में चलाने ही वाले हैं। जनता राजकपूर वाला जापानी जूता पहने घूम रही है। बढ़े हुए रेलभाड़े ने जनता की छाती में बुलेट तो घुसेड़ ही दी है। खेती की छाती सिकुड़कर उद्योगों की छाती फैल रही है। नौकरीपेशा बर्खास्त किए जा रहे हैं। सेवानिवृत्त नौकरशाह सलाहकार बनकर मंत्रियों द्वारा ठेके पर रखे जा रहे हैं। देश आईएएस की सेवानिवृत्त नौकरशाही के हत्थे चढ़ गया है। भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के यहां पचास हजार रुपयों की चोरी हुई। पुलिस ने सवा करोड़ चोर से बरामद कर लिए। यह कलियुग में सतयुग का आगाज है। 545 सांसद मिलकर यही चमत्कार कर दें तो विदेशों से कालाधन लाने की क्या जरूरत है?
बुद्धिजीवी कलमों में दुशासन की स्याही है। द्रोणाचार्य के माथे पर संविदा शिक्षक और शिक्षाकर्मी का लेबल चिपक गया है। गैंगरेप की रिपोर्ट लिखाने पर शिकायतकुनिंदा की देह से थानेदार कहता है, हम भी तो दु:शासन के भाई हैं, द्रौपदी। इतिहास के सबसे बड़े अन्यायी शासक रावण के खिलाफ राम के लिए मरे खपे भील, कोल, वानर, किन्नर, केवट वगैरह झारखंड, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, आंध्र, तेलंगाना और ओडिसा के दण्डकारण्य में उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राम अपना मन्दिर बनवाने में व्यस्त हैं। बजरंगबली उनके चरण सेवक थे। बजरंग दल राम के यश को बंधक बनाए हुए हैै।
द्रौपदी रक्षक कृष्ण के इलाके में यादवकुल शिरोमणि बालबच्चों सहित बलात्कार प्रमोशन अभियान के कारण अस्तव्यस्त हैं। वे मुलायम वाणी में मुस्कराकर कहते हैं, बच्चे हैं गलतियां हो जाती हैं। विचारों, संसाधनों, सिद्धांतों, भावनाओं और इतिहास का नेताओं, नौकरशाहों और उद्योगपतियों द्वारा अनवरत गैंगरेप जारी है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। )

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