Sexual violence will not stop you from just talking: सिर्फ बात करने से नहीं रुकेगी यौन हिंसा

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जिस तरह भारत में महिलाओं और बच्चियों के प्रति यौन हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं उसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए? यह एक ऐसा अनुत्तरित प्रश्न है जिस पर लंबे समय से मंथन किया जा रहा है। क्या सिर्फ कानून बनाकर इस पर लगाम लगाया जा सकता है। या तमाम मंचों पर बहस कर इस पर नैतिक ज्ञान देकर इस तरह की यौन हिंसा की घटनाओं को रोका जा सकता है। इसी के साथ एक और प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर नहीं खोजा सका है। यह प्रश्न है कि क्या रेप और सेक्स करने की उम्र तय हो सकती है? उत्तर खोजना बेहद कठिन है। हां यह अलग बात है कि तमाम रिपोर्ट और तथ्यों के आधार पर इनको एक टाइम फॉर्मेट में बांधने का प्रयास जरूर किया गया। बाल विवाह जैसी प्रथा को खत्म करने के साथ लड़कियों की शादी की उम्र का संवैधानिक तौर से निर्धारण इसी प्रयास का एक सकारात्मक पहलू है। इसके अलावा अभी हाल ही में बाल अपराधों को लेकर हुए संवैधानिक परिवर्तन को भी उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
पर अब भी यह कहना मुश्किल है कि अगर कोई लड़की अपनी मर्जी से तय उम्र से पहले शादी कर ले, या कोई नाबालिग लड़का आपसी सहमति से किसी नाबालिग लड़की से शारीरिक संबंध स्थापित कर ले तो उसे किस दायरे में रखा जाएगा। भारत में तो इस तरह के मामले परिजन अपने स्तर पर निपटा ले रहे हैं। कोर्ट कचहरी और पुलिस की फाइल तो दूर की बात है। यह मंथन का विषय इसलिए भी है कि हाल में आरटीआई द्वारा एक ऐसे सच से पूरे भारत का सामना हुआ है जिसमें स्पष्ट हुआ है कि अबॉर्शन कराने वालों में अंडर एज लड़कियों की संख्या काफी अधिक थी।
दो-तीन साल पहले महाराष्टÑ के स्वास्थ विभाग ने आरटीआई द्वारा मांगे जवाब में बताया था कि वर्ष 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार कुल 31 हजार महिलाओं ने अबॉर्शन करवाया। इसमें 15 से 19 साल की उम्र की लड़कियों की संख्या 1600 के करीब थी। यह आंकड़ें सिर्फ महाराष्टÑ के ही थी। अगर पूरे भारत से ऐसे आंकड़ों को एकत्र किया जाए तो चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं। वहीं यौन हिंसा में सम्मिलत अंडर एज लड़कों का आंकड़ा भी बाल सुधार निकेतनों में बढ़ता ही जा रहा है। निर्भया का केस एक टेस्ट केस है जिसमें पूरी दुनिया ने देखा कि एक अंडर एज लड़का कैसे यौन हिंसा में कु्ररता की हद तक पार कर गया। आपको बता दें कि 2014 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 89423 मामले सामने आए थे, जोकि साल 2017 में बढ़कर 129000 हो गए। 2017 में किशोरों द्वारा दर्ज आपराधिक मामलों की संख्या 33000 है।
दरअसल बात सिर्फ अनसेफ सेक्स और अबॉर्शन की नहीं है। बात है लड़के और लड़कियों में तेजी से हो रहे हार्मोनल विकास की। आज की पीढ़ी समय से पहले ही बड़ी हो जा रही है। इंटरनेट की स्वच्छंदता और वहां सेक्स सामग्रियों की उपलब्धता ने युवा पीढ़ी को वक्त से पहले काफी समझदार और अपोजिट सेक्स के प्रति जिज्ञासु बना दिया है। सेक्स के मामले में यह स्वच्छंदता कुछ अधिक है। दिनों दिन बढ़ रहे सेक्सुअल हरैसमेंट, रेप, आदि की घटनाओं में इंटरनेट ने बड़ा रोल प्ले किया है। एक तरफ जहां युवा मन को इंटरनेट के जरिए यौन संबंधी जिज्ञासा को शांत करने का आसान साधन मिल गया है, वहीं इन जिज्ञासा और इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपने आस-पास आसान सा जरिया खोजने में वे जुट जा रहे हैं।
इंटरनेट पर मौजूद साधनों ने एक ऐसी यौन विकृति को जन्म दे दिया है, जिसमें हम रिश्ते, नाते, छोटे -बड़े, अपने पराए सभी की सीमाओं को तोड़ चुके हैं। एनसीआरबी के आंकड़ें गवाही देते हैं कि रेप के मामलों में अधिकतर करीबी और परिवार के लोग ही शामिल होते हैं। छोटी बच्चियों के मामले में यह प्रतिशत तो 85 का आंकड़ा छू रहा है। छोटी बच्चियों को गुड टच और बैड टच में अंतर नहीं पता होता और वे आसानी से शिकार बन जाती हैं। जबकि कॉलेज गोइंग बच्चों में यौन इच्छा की पूर्ति की प्रबल इच्छा अपने हमउम्र युवाओं के प्रति आकर्षित करती है। यही कारण है कि हाल के वर्षों में सेक्स से जुडेÞ अपराधों की संख्या में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हुई है। यह मंथन का समय है। क्या हम कानूनों के बंधन में बांध कर ऐसे अपराधाओं को रोक सकते हैं? क्या सिर्फ शादी की उम्र का निर्धारण और बाल अपराधों की श्रेणियां तय कर ऐसी घिनौनी हरकतों पर लगाम सकते हैं? या फिर हमें नई सोच के साथ इसमें आगे बढ़ना होगा।
मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल और अब दूसरे कार्यकाल में भी महिला सुरक्षा को लेकर तमाम दावे हुए हैं। कई नई पहल भी की गई है। पर यौन हिंसा की जड़ों में हम अभी तक जाने में पीछे ही रहे हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने कई बार चीन और जापान की यात्रा की है। भारत को स्मार्ट बनाने की परिकल्पना पर मंथन हो रहा है। प्रधानमंत्री को चीन और जापान से इस दिशा में किए गए कार्यों को भी जरूर देखना चाहिए। देखना चाहिए कि चीन ने कैसे इंटरनेट पर पोर्न सामग्रियों को रोकने के लिए बेहतरीन प्रबंधन किया है। प्रधानमंत्री को यह देखना चाहिए कि कैसे वहां के युवाओं को सेक्स एजूकेशन के लिए बेहतरीन माहौल प्रदान किया जा रहा है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी वहां किए जा रहे प्रयासों को भी करीब से देखने का उनके पास मौका है। सिर्फ स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन चलाकर हम सभ्य और विकासात्मक समाज की परिकल्पना नहीं करे सकते हैं। हमें अपने समाज को सभ्य बनाने के लिए कैंसर का रूप ले रही यौन विकृतियों को दूर करने का प्रयास करना होगा। भारत सराकार को भी इंटरनेट पर मौजूद पोर्न सामग्रियों और इस तरह की यौन हिंसा को बढ़ावा देने वाली वेबसाइट्स पर लगाम कसने की जरूरत है।
जब चीन सरकार तमाम खतरों को भांप कर ट्वीटर जैसी सोशल साइट्स को बंद कर अपनी सुविधा के अनुसार सोशल साइट्स चलाने में सक्षम है, तो क्या भारत सरकार यौन हिंसा को रोकने के लिए इंटरनेट पर मौजूद पोर्न साइट्स को बंद करने का प्रयास नहीं कर सकती। प्रधानमंत्री मोदी जब भी चीन की यात्रा पर जाते हैं तो वहां उन्हें ट्वीटर अकाउंट वीबो पर अपना अकाउंट बनाना पड़ता है, क्योंकि वहां के लोगों से संवाद के लिए यह जरूरी है। तो क्या भारत कुछ ऐसा नहीं कर सकता है, जो यहां के लोगों के लिए जरूरी है। इंटरनेट की सुलभता अच्छी बात है। पर यह सुलभता निगेटिव अप्रोच के लिए न हो इसके लिए सिर्फ बात करने से बात नहीं बनेगी। यह सरकार के हाथ में है कि वह भारत में मौजूद पोर्न साइट्स को बंद कर छोटी बच्चियों को यौन हिंसा से बचाव कर सके।

– कुणाल वर्मा

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(लेखक आज समाज के संपादक हैं)
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