Good bye! अलविदा!

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हर एक भारतीय को मंथन करना चाहिए कि क्या उसने वो सबकुछ पाया जो पिछले साल सोचा था। क्या हम उस समाज में अपनी हिस्सेदारी बेहतर तरीके से निभा सके जिस समाज के लिए हम हमेशा रटते रहते हैं। राजनीतिक तौर पर बड़ा परिवर्तन कर क्या हम उस उद्देश्य को पा सके जिसकी हमने कल्पना की थी। सोशल मीडिया के इस दौर में हम खुद को कहां खड़ा पाते हैं यह भी मंथन का विषय का हो सकता है। आने वाले वर्ष में हम कहां होंगे इस पर भी मंथन जरूरी है। कौन हमें यूज कर रहा है, हम कैसे यूज हो रहे हैं यह भी जरूर सोचना होगा।
बहुत पुरानी कहावत है…जो बीत गई सो बात गई। पर, क्या आज हम उस दौर में हैं कि जो बीत गई सो बात गई कह कर अपने दायित्वों से बच सकते हैं। हमारी आने वाली पीढ़ियां क्या हमें इस बात के लिए माफ कर देंगी कि अपनी विरासत में उन्होंने हमारे लिए क्या छोड़ा। सिर्फ साल 2019 की ही समीक्षा करें तो पाएंगे कि राजनीतिक रूप से भले ही हमने एक सशक्त सरकार दी, पर क्या हम सरकार की उम्मीदों पर खरा उतर पाएं, या सरकार हमारी उम्मीदों पर खरा उतर पाई। जवाब खोजना उतना भी मुश्किल नहीं होगा। सिर्फ विचारधाराओं, बहकावों, राजनीतिक बयानबाजी से ऊपर उठकर हमें सोचने की जरूरत है।
पूरा भारत 2014 के बाद दो युग में बंट गया है। एक युग है मोदी सरकार के पहले का युग और दूसरा मोदी युग। साल 2019 की कहानी भी इसी के इर्द गिर्द घूमती नजर आती है। पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने नोटबंदी, जीएसटी जैसे बड़े फैसले लेकर हिम्मत दिखाई थी। विपक्ष ने इसे हथियार बनाया और चुनावी मैदान में इसका इस्तेमाल किया। पर भारत की जनता ने इसे नकारते हुए नरेंद्र मोदी सरकार पर भरोसा जताया। वर्ष 2019 का साल भारत की दृष्टि से कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। 2019 कई खट्टी मीठी यादें देकर गया है जोकि भुलाए नहीं भूलेंगी। भारत में आम चुनावों की वजह से यह साल राजनीतिक रूप से काफी खास रहा तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार ने पाकिस्तान को पूरे विश्व में अलग-थलग करने में सफलता पाई। अदालती फैसलों ने देश के कुछ दशकों पुराने मुद्दों का हल निकाल दिया तो विज्ञान, अर्थव्यवस्था, खेल और सिनेमा जगत में भी भारत ने कई उपलब्धियां हासिल कीं। ऐतिहासिक प्रयागराज कुंभ के साथ शुरू हुई वर्ष 2019 की यात्रा साल के अंत आते आते सामाजिक वैमनस्य में कैसे बदल गई यह भी एक रिसर्च का विषय हो सकता है। ऐतिहासिक कुंभ में जहां हर धर्म और संप्रदाय के लोगों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं वर्ष के समापन पर एनआरसी और सीएए जैसे विशुद्ध राष्टÑीय मुद्दों को कैसे धर्म और संप्रदाय का राजनीतिक अमलीजामा पहना दिया गया इस पर भी हर एक भारतीय को मंथन जरूर करना चाहिए।
सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध किया जाना जरूरी है, इस तरह की मानसिकता ने भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को बेहद कमजोर करना शुरू कर दिया है। मुद्दा चाहे राष्टÑ की सुरक्षा से हो, मुद्दा चाहे सैन्य ताकत और उनके आॅपरेशन से जुड़ा हो, मुद्दा चाहे किसी समाज, किसी धर्म या किसी संप्रदाया से जुड़ा हो। हर मुद्दे पर विपक्ष की विरोधी राजनीति ने भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को नुकसान ही पहुंचाया है। वर्ष 2019 से बेहतर उदाहरण कोई हो नहीं सकता। जनवरी माह में ही लोकसभा चुनावों से पहले एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए नौकरियों एवं शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दे दी। विपक्ष ने इस कदम को चुनावी नौटंकी करार दिया। फरवरी का महीना पूरे देश को शोकाकूल कर गया। इस साल 14 फरवरी को दोपहर में पुलवामा पर सीआरपीएफ की गाड़ी पर आतंकी हमले ने पूरे विश्व को झकझोर कर रख दिया। भारत के 40 जवान शहीद हो गये। इस घटना ने हर एक भारतीय का खून खौला दिया। आम चुनाव सिर पर था, ऐसे में देश की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। पर भारतीय वायुसेना के एयर स्ट्राइक ने पूरे विश्व को संदेश दे दिया कि अब भारत बदल रहा है। वह इस तरह के किसी कायराना हरकत का न केवल करारा जवाब देगा, बल्कि पाकिस्तान को उसकी करतूतों की सजा भी देगा। मोदी सरकार ने विश्व समुदाय के सामने ऐसी घेराबंदी कर दी कि पाकिस्तान अलग थलग पड़ गया। भारत सरकार की इस सख्त और दमदार कार्रवाई का भी जब राजनीतिकरण शुरू हुआ और विपक्ष ने इसे भी मुद्दा बनाने की कोशिश की तो देश वासियों को यह राजनीति रास नहीं आई। 23 मई को आये चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया कि एक बार फिर नरेंद्र मोदी का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला। भाजपा ने 2014 के चुनावों के मुकाबले 2019 में अकेले दम पर 303 लोकसभा सीटें हासिल कर नया रिकॉर्ड बना दिया।
वर्ष 2019 में अंतरिक्ष से लेकर नभ, जल तक में भारतीय सेना और वैज्ञानिकों ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाई। चंद्रयान की आंसिक असफलता में भी विपक्षियों ने अपनी राजनीति खोज ली। समाजिक तौर पर बड़े बदलाव के रूप में तीन तलाक का कानून अस्तित्व में आया। पर इसका भी विरोध कर विपक्षी पार्टियों ने अपनी मंशा जता दी कि मुद्दा चाहे जो हो सरकार का विरोध करना है। अनुच्छेद 370 के समापन ने तो जैसे विपक्षी दलों को एक ऐसा मौका दे दिया जिसका वो इंतजार कर रहे थे। पांच अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया। लगभग 70 वर्षों तक अनुच्छेद 370 के साथ जीने वाले कश्मीर को असल आजादी वर्ष 2019 में मिली। अनुच्छेद 370 को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप चाहे जिस स्तर पर भी हों लेकिन देशभर में जिस तरह से इस फैसले के बाद जश्न मनाया गया, उससे यह साफ हो गया कि देश की जनभावना भी यही चाहती थी कि जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह से भारत का हिस्सा बनाने के लिए, धरती के स्वर्ग को पूरे भारत के साथ खड़ा करने के लिए 370 को खत्म करना जरूरी था। 35ए को हटाना जरूरी था।   मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ पाकिस्तान ने हायतौबा मचाई, संयुक्त राष्ट्र तक से गुहार लगाई लेकिन भारत सरकार के पुख्ता राजनयिक प्रबंधों की वजह से विश्व को यह स्वीकार करना पड़ा कि यह भारत का आंतरिक मामला है।
राम मंदिर अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पूरे देश में फैसले की यह घड़ी आशंकाओं से भरी हुई थी। सभी की जुबान पर दंगों के अलावा कोई बात नहीं थी। पर भारत की जनता ने समझदारी दिखाई। न तो जश्न हुआ न प्रलाप। इस फैसले को सभी धर्म के मानने वालों से स्वीकार किया। पर यह बात शायद राजनीतिक दलों को नहीं पची कि कैसे इतना बड़ा फैसला भारत की जनता ने बिना किसी हो हल्ला के स्वीकार कर लिया।
नागरिकता कानून संसद में पारित होते ही जिस तरह सुनियोजित तरीके से विरोध शुरू हुआ और इसकी आग में जिस तरह आज भी पूरा देश जल रहा है उस पर गंभीरता से मंथन जरूरी है। नए साल में प्रवेश हम नए संकल्पों के साथ करेंगे। ऐसे में जरूर सोचना चाहिए कि राम मंदिर जैसे अब तक के सबसे बड़े धार्मिक मामलों पर जो जनता अपनी समझदारी से शांत रह सकती है, वह अचानक कैसे नागरिकता कानून में हिंदू-मुस्लिम का उन्माद पैदा कर देती है। विरोध प्रदर्शन कैसे हिंसा में तब्दील हो जाती है और लोग एक दूसरे के खून के प्यासे बन जाते हैं।  वर्ष 2019 का अंत कहीं से भी सुखद नहीं कहा जा सकता है। किसी मुद्दे को बिना समझे हिंसा पर उतारू होने वाली उन्मादी भीड़ को समझदारी दिखाने की जरूरत है। आने वाला वर्ष उनसे उम्मीद करेगा कि वो हिंदू मुस्लिम से ऊपर उठकर देश के लिए सोचे। भारतीय लोकतंत्र कहीं से खतरे में नहीं है। ऐसे में लोकतंत्र के खतरे का बैनर पोस्टर उठाए लोग भी विचारधारा से ऊपर उठकर अपनी प्रतिक्रिया दें। नहीं तो उटपटांग राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का दुष्परिणाम क्या होता है यह सामने है। इसी उम्मीद के साथ मंथन को अलविदा कर रहा हूं कि आने वाला साल सभी के लिए सुखद और समृद्धि लेकर आएगा।
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