Challenge of saving agriculture after lockdown: लॉकडाउन के बाद कृषि बचाने की चुनौती

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कोरोना संकट की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन के कारण गांवों में फसल कटाई में अनेक कठिनाईयां आ रही हैं, जिससे किसान एक बड़ी तबाही के कगार पर खड़ा है। वहीं, इस संकट से सीधे प्रभावित एक बड़ी आबादी के सामने भूखमरी की स्थिति मुंह बाए खड़ी है। ऐसे में हालात को देखते हुए एक ऐसी योजना बनाई जा सकती है, जिससे किसानों के साथ सबसे गरीब और भूमिहीन तबकों को भी बड़ी राहत मिल सकती है। गांवों में तुरंत भूख दूर करने के लिए विभिन्न खाद्यों की कमी भी स्थानीय स्तर पर ही दूर हो सकती है। कोरोना संकट से पैदा हुई परिस्थितियों में सरकार को चाहिए कि किसानों की फसल के लगभग एक चौथाई हिस्से के लिए उन्हें उचित और न्यायसंगत दर पर अग्रिम भुगतान कर दे। इससे किसानों की तुरंत मंडी भागने की मजबूरी दूर हो जाएगी और किसानों के हाथ कुछ नकदी भी आ जाएगी। अग्रिम राशि देते समय यह शर्त हो कि किसान मजदूरों को तुरंत फसल कटाई की मजदूरी न्यायसंगत दर पर दे देंगे। यूं कहें कि लॉकडाउन के बाद पशुपालकों और किसानों की समस्याओं को देखते हुए उन्हें समृद्ध और मजबूत बनाए रखने की बड़ी चुनौती है।
सबसे पहले बात पशुपालकों की। हमेशा छह-सात सौ रुपए कुंतल बिकने वाला भूसे का दाम 800-1000 रुपए तक पहुंच गया है। लॉकडाउन की वजह से दूध न बिक पाने से पहले से ही परेशान पशुपालकों के सामने संकट है कि अगर भूसा न मिला तो पशुओं को क्या खिलाएंगे। लॉकडाउन से पशुपालकों की स्थिति भी अब बिगड़ती जा रही है। अब वो परेशान हो गए हैं। बताते हैं कि 40-45 रुपए प्रति लीटर बिकने वाला दूध 35-36 में बिक रहा है और पशु आहार और भूसे के दाम आसमान छू रहे हैं। अगर ऐसे ही सस्ते में दूध बेचेंगे तो महंगा चारा कैसे खिला पाएंगे। जो भूसा छह-सात सौ रुपए कुंतल बिक रहा था अब हज़ार रुपए के ऊपर पहुंच गया है। अब पशुपालक क्या करेगा। बताते हैं कि पशुपालक आजकल अपने पशुओं को सरसों और पुआल का भूसा खिला रहे हैं, क्योंकि अभी उनके पास भूसा खत्म हो गया है और लॉकडाउन की वजह से भूसा भी नहीं मिल रहा है। किसी तरह से सरसों और पुआल से पशुओं का पेट भर रहा है। जब दूध ही नहीं बिकेगा तो महंगा भूसा कैसे खरीदेंगे। इस समय तो हर साल ही भूसे की किल्लत होती है, लेकिन गेहूं कटने लगता है तो भूसा मिलने लगता है।
25 मार्च से देश में लगे 21 दिनों के लॉकडाउन से रबी फसलों की कटाई न होने से पशुपालकों के सामने ये दिक्कत आ रही है। मजदूरों, हार्वेस्टर, थ्रेशर, ट्रैक्टर, ट्रकों और दूसरे उपकरणों की आवाजाही ठप होने के कारण गेहूं, दलहन, तिलहन जैसी रबी फसलों की कटाई रुक गई है। फसलों के न कटने से भूसे की किल्लत बढ़ी है। एक पशुपालक का कहना है कि आजकल अपनी गाय को धान का पुवाल ही खिला रहे हैं। बताते हैं कि अप्रैल तक हमारे यहां गेहूं कटने लगता है, जिससे भूसा मिल जाता है, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से अभी गेहूं कटना ही नहीं शुरू हुआ। अभी तक तो ठीक था लेकिन अब यहां भी कोरोना के मरीज मिलने से पूरी तरह से बंदी हो गई है। अब मजदूर भी बाहर निकलने से डर रहे हैं। आपको बता दें कि 20वीं पशुगणना के अनुसार देश में 14.51 करोड़ गाय और 10.98 करोड़ भैंसें हैं, जबकि गोधन (गाय-बैल) की आबादी 18.25 करोड़ है। साथ ही दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) की संख्या 12.53 करोड़ है। जानकार कहते हैं कि जैसे हमारे लिए खाना जरूरी है, वैसे ही पशुओं के लिए भी चारा जरूरी है। खेती करने वाले किसान तो कुछ दिन रुक भी सकते हैं, लेकिन पशुपालक नहीं रुक सकता, वो हर दिन चारा खिलाएगा तभी तो गाय-भैंस दूध देगी। अगर दूध ही नहीं मिलेगा तो पशुपालक दूध कैसे बेचेंगे। बताते हैं कि एक वयस्क गाय या भैंस एक दिन में 7-8 किलो भूसा खा लेती है। जितना हारा चारा जरूरी है, उतना ही जरूरी उन्हें भूसा भी देना होता है। जनवरी के बाद अप्रैल तक वैसे भी भूसे की किल्लत हो जाती है, लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही देरी हो रही है।
अब बात खेती-किसानी की। लॉकडाउन के बाद खेती-किसानी और देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए कृषि पर विशेष ख्याल ऱकना जरूरी है। जानकार बताते हैं कि फसल के एक चौथाई हिस्से को उसी गांव में भंडारण कर इसका उपयोग राशन वितरण, घोषित निःशुल्क राशन वितरण, मिड डे मील, आंगनवाड़ी और सबला कार्यक्रमों के लिए किया जाना चाहिए। इस तरह सबसे गरीब तबकों की भूख और कुपोषण की समस्या भी स्थानीय स्तर ही शीघ्र कम हो सकेगी और इसके लिए दूर से मंगवाए जाने वाले अनाज और अन्य खाद्यों पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी। इसके साथ ही इस साल कटाई के समय प्रत्येक जिले में एक वरिष्ठ कृषि अधिकारी को फसल कटाई कार्य की देखरेख और सहायता की जिम्मेदारी देनी चाहिए, जिससे फसल कटाई में भी कोरोना को लेकर सभी सावधानियां स्थानीय आवश्यकतानुसार जैसे सोशल डिस्टेंसिंग, स्वच्छता इत्यादि सुनिश्चित हो सके। खेतों में पानी, साबुन आदि की व्यवस्था भी होनी चाहिए। 26 मार्च को राशन में मिलने वाले खाद्य पदार्थों के लिए जो विशेष घोषणाएं (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के अंतर्गत) की गई हैं, उसके आधार पर राशन का वितरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिसमें अतिरिक्त निःशुल्क राशन व्यवस्था का भी जिक्र है। राशन वितरण में बायोमेट्रीक मिलान संबंधी बाध्यताओं में छूट देना भी आवश्यक है। इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि मेहनतकशों-मजदूरों-किसानों के बायोमैट्रिक मिलान में कठिनाईयां आती हैं, क्योंकि उनकी अंगुलियों की छाप श्रम के कारण प्रायः स्पष्ट नहीं आ पाती है।
गांवों में आजकल मोबाईल और स्मार्ट फोनों की अच्छी-खासी उपस्थिति है, जिससे ऐसे प्रयासों के संचालन में बहुत सहायता मिलेगी और सामाजिक दूरी बनाए रखने की आवश्यकता का निर्वहन भी संभव हो सकेगा। साथ ही इस प्रयास को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए भी पूरी सर्तकता बरतनी होगी। यह प्रयास कई समस्याओं जैसे- उत्पादों को जल्दबाजी में लंबी दूरी तक मंडी पंहुचाने, वितरण के लिए भारी यातायात की आवश्यकता से राहत दिलाएगा और सोशल डिसटेंसिंग बनाए रखने में मदद करेगा। सभी कमजोर वर्गों तक शीघ्रता से सहायता पहुंचाने की दृष्टि से यह एक सक्षम माडल है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार कर इसे व्यापक स्तर पर लागू करना चाहिए। इस वर्ष जिन गांवों में कम्बाईंड हारवेस्टर से कटाई होती थी, वहां कम्बाईंड हारवेस्टर प्रायः नहीं पहुंच पा रहे हैं। अतः यह अच्छा अवसर है कि किसानों और मजदूरों के जो रिश्ते कमजोर हो गए हैं उन्हें नए सिरे से मजबूत करने का प्रयास किया जाए। यदि मशीन के बिना हाथ से कटाई होगी तो इससे पशुओं के लिए अधिक चारा बचेगा और आने वाले दिनों में यह बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। बहरहाल, देखना यह है कि सरकार खेती, किसानी और पशुपालकों के हितों की रक्षा के लिए क्या खास कदम उठाती है?

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