संपादकीय Do not justify corrupt behaviors: भ्रष्ट आचरण को न्यायोचित मत ठहराइये By Ajay Shukla 4 second read 0 0 57 Share on Facebook Share on Twitter Share on Google+ Share on Reddit Share on Pinterest Share on Linkedin Share on Tumblr ऋषि शुक्ल को सबसे अहम जांच एजेंसी सीबीआई के मुखिया का पद संभालने के साथ ही उसकी साख बचाने की गंभीर चुनौती भी मिली है। इन दिनों जिसकी साख शून्य हो चुकी है। पहली बार यह बात देश की सर्वोच्च अदालत में गूंजी कि निदेशक भ्रष्ट है या सेकेंड मैन? सीबीआई निदेशक ने अदालत में माना कि सीबीआई भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। देश और सरकार के लिए इससे अधिक शर्मनाक स्थिति कोई अन्य नहीं हो सकती। सीबीआई को देश के अहम मामलों की जांच करने और उसका दायरा पूरे देश तक बढ़ाने के 1963 के शासनादेश का आशय यही था कि भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म किया जाए मगर हो उलट रहा है। हमें इसकी जड़ तक जाना होगा। भ्रष्टाचार न तो सीबीआई ने फैलाया है और न ही सरकार ने। आचरण से ईमानदारी और भ्रष्टाचार आता है। जब देशवासियों ने भ्रष्टाचार को जीवन का अंग बना लिया, तो कोई सियासी दल हो या उसका नेता, सरकार हो या संस्थाएं सभी का पीड़ित होना स्वाभाविक है। हमें भ्रष्टाचार से अधिक भ्रष्ट आचरण का उपचार करने की जरूरत है। उसके खिलाफ आवाज बुलंद करने की जरूरत है। देश सीबीआई को एक प्रतिष्ठित जांच एजेंसी मानता है हालांकि उसका कोई संवैधानिक अस्तित्व नहीं है। अंग्रेजी हुकूमत के जिस दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 के तहत 1963 में एक शासनादेश जारी कर सीबीआई बनाई गई, उसपर तत्कालीन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर तक नहीं हैं। सीबीआई पर सदैव यह आरोप रहा है कि वह गणतंत्र के ढांचे के विरुद्ध है। सत्तारूढ़ दल अपने विरोधियों को दबाने के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं। इसी तरह इन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट पर भी दुरुपयोग के आरोप लग रहे हैं। इन संस्थाओं पर यह भी आरोप हैं कि उन्हें सत्तारूढ़ जनों के भ्रष्टाचार नजर नहीं आते। सीबीआई ने जिस तरह से कोलकाता में प्रपोगंडा किया वह दुखद है। सीबीआई ने दावा किया कि कोलकाता पुलिस आयुक्त को जांच में मदद के लिए नोटिस भेजे गए, मगर सच्चाई यह है कि जो नोटिस 30 नवंबर को भेजा, उसमें 6 नवंबर को जांच में शामिल होने को कहा गया। जो नोटिस 12 दिसंबर को भेजा उसमें 10 दिसंबर को पेश होने को कहा गया। पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के घर सीबीआई 40 लोगों के साथ ऐसे घुसती है जैसे वह कोई अपराधी हो। विरोध हुआ, तो ड्रामा शुरू हो गया। विचारक शेखर गुप्ता मानते हैं कि सीबीआई ने अपनी विश्वसनीयता शून्य कर ली है। कुछ वर्षों से देखने में आ रहा है कि जब कोई व्यक्ति या पदाधिकारी किसी विरोधी खेमे में होता है, तब हम उसे भ्रष्ट, झूठा, बेईमान जैसी तमाम संज्ञाएं देते हैं मगर जब वह हमारे पाले में आ जाता है, तो उसके अपराधों को न्यायोचित सिद्ध करने लगते हैं। हमारी यही सोच हमें भ्रष्ट और भ्रष्टाचार का पोषक बनाती है। इसकी परिणिति यह है कि भ्रष्टाचार निरोध के लिए जिम्मेदार भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो रहे हैं। वो मानते हैं कि भ्रष्ट आचरण से कुछ अधिक कमा लेंगे और सत्ता पर काबिज दलों को अनुग्रहित करके, न केवल बच निकलेंगे बल्कि सम्मान भी खरीद लेंगे। इसी सोच ने सीबीआई की साख पर बट्टा लगाने के साथ ही संवैधानिक व्यवस्था को सवालों के घेरे में ला दिया है। इस अपराध में कोई एक दोषी नहीं है बल्कि वो सभी हैं, जो भ्रष्टाचार करते, समर्थन और संरक्षण देते हैं। हम अपने कुछ बुद्धिजीवी मित्रों के साथ, जिनमें कुछ सरकारी अफसर भी शामिल थे, दिल्ली में चर्चा कर रहे थे। एक मित्र ने मंत्रालय की एक फाइल दिखाई कि कैसे इन कागजों का प्रयोग विरोधी दलों को घेरने के लिए किया गया था। जब आरोपी नेता सत्ताधारी दल के समर्थन में आ गया तो न केवल उसे संरक्षण दिया गया बल्कि फाइल को रद्दी में डाल दिया गया। भ्रष्ट आचरण में शामिल वह नेता अब अपने पुराने दल के नेताओं को ही आरोपित करता है। सीबीआई के एक सेवानिवृत्त निदेशक और सुप्रीम कोर्ट के जज ने चर्चा के दौरान कई ऐसे वृत्तांत बताये, जो चौकाने वाले हैं। उन्हें देश के सामने लाना चाहिए मगर समस्या नेताओं के तथाकथित उन समर्थकों से है, जो न सच सुनना चाहते हैं और न देखना। शायद अपने नेताओं के पाप का बचाव करना उनका नैतिक धर्म बन चुका है। यह सोच किसी भी लोकतांत्रिक देश के पतन के लिए पर्याप्त है। इसके लिए हम किसी नेता या दल को दोषी नहीं ठहरा सकते क्योंकि भ्रष्ट सोच उनके समर्थकों के कारण विकसित होती है। हाल यह है कि अब सच पर चर्चा के बजाय धमकाने और निजी हमले करने की परंपरा शुरू हो चुकी है। समस्या यह भी है कि हम सच बोलें-लिखें या उस भीड़ का हिस्सा हो जायें, जो चाटुकारिता के चलते झूठ, लूट और नफरत फैलाने वालों का साथ देती है। देश के नामचीन वकील प्रशांत भूषण 2014 तक कुछ दलों को मुफीद थे। उनकी विद्वत्ता और ईमानदार कोशिशों से तत्कालीन सत्ता को चुनौती दी जाती थी। प्रशांत के पिता ने भी लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ी थी। अब सच की वकालत करने पर उनके मुंह पर कालिख फेंकी जाती है। अवमानना की कार्यवाही की जाती है, क्योंकि वह मौजूदा सत्ता के लिए मुफीद नहीं। आश्चर्य होता है, जब चिट एंड फंड घोटाले में आरोपी मुकुल राय, हेमंत बिश्वा शर्मा सत्तारूढ़ दल का दामन थामकर विशुद्ध हो जाते हैं। केंद्रीय मंत्री का नाम इसी तरह के घोटाले में आता है मगर उनसे पूछताछ भी नहीं होती। फोन टैपिंग सामने आती है, जिसमें एक बड़ा नेता इस घोटाले का खुलासा करने वाले आईपीएस राजीव कुमार को रगड़ने की बात कहता है। नेता के समर्थक सच को नजरांदाज कर झूठ-लूट और नफरत का समर्थन करते हैं। हम स्कूल के दिनों में दोस्तों के साथ चर्चा करते थे कि 21वीं सदी में पारदर्शी ईमानदार भारत होगा। 1990 की बात है 12वीं की परीक्षा पास कर हम यह मंथन कर रहे थे कि भविष्य में क्या करना है? हमारे कुछ मित्र दक्षिण भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों में भारी भरकम रकम देकर पढ़ने चले गए। हमारे पुलिस अफसर पिता ने अपने मित्र विजय चाचा से कर्ज लेकर हमें भी बैंगलूरू भेजने का मन बनाया, हमारी अंतरात्मा ने पिता को कर्जदार बनाने वाली पढ़ाई से रोक दिया। इतना धन खर्च करके भविष्य में हम ईमानदार रहेंगे, यह निश्चत नहीं था। हमारे पिता ने संस्कृति, संस्कार, ईमानदारी और साहस सिखाया था। हम वापस लौटे और सिविल सेवा के लिए तैयार होने लगे। परीक्षा दी और रैंक हासिल करने के बाद पत्रकारिता करने का फैसला किया, क्योंकि सच के साथ खड़े होने की ललक थी। पिताजी नाराज हुए मगर सोच को समर्थन किया। उन्होंने कहा पूरे ज्ञान से ईमानदारी, साहस और सौहार्द के साथ अपनी राह बनाओ, नहीं हारोगे। मुश्किलों का सामना करना मगर गलत राह न पकड़ना। उनकी इस सीख का नतीजा यह हुआ कि हमने अपने पिता की गलती पर खबर छापी। उनको बहुत दिनों तक संकट का सामना करना पड़ा था। कई लोगों ने हमें भला बुरा कहा मगर पिताजी ने मजबूती दी। हाल के दिनों में हमने ऐसा ही कुछ सच लिखा तो किसी ने हमसे कहा कि इसे हटा दो नहीं तो हमें तुमको हटाना पड़ेगा। हमने कहा जो आपकी मर्जी, वो करें। कल मरूं या आज फर्क नहीं पड़ता। देश जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें जरूरत सियासी या निजी प्रतिबद्धता से अधिक साहस के साथ सच बोलने की है। किसी का समर्थन करने का अर्थ यह नहीं कि गलत-सही न देखें। गलत का साथ देकर देश से गद्दारी करने के बजाय सच को समझें, और बोलें। झूठ, लूट और नफरत फैलाने वालों का विरोध करें। गलत सदैव गलत होता है और सही सदैव सही। यही राष्ट्रभक्ति और प्रेम है। जय हिंद। अजय शुक्ल ajay.shukla@itvnetwork.com (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)
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