Children are also becoming victims and hunters of sexual violence: बच्चे बन रहे यौन हिंसा का शिकार और शिकारी भी

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आज मंथन से पहले आपको दो ऐसी खबरों के बारे में संक्षिप्त में बता रहा हूं जो आपको खुद ब खुद मंथन करने पर मजबूर कर देगा। दोनों खबरें करीबन एक ही तरह की है, लेकिन अलग-अलग राज्यों से है।
पहली खबर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक स्कूल की है। यहां पहली क्लास में पढ़ने वाली छह वर्षीय बच्ची के साथ गैंग रेप की वारदात हुई। अगर यह लाइन पढ़ते हुए आप यह सोच रहे हैं कि इसमें ऐसा नया क्या है। क्योंकि आए दिन हमारे देश की बच्चियां नर पिसाचों का शिकार हो रही हैं। पर जरा ठहरिए। मैं आज जो आपको बताने जा रहा हूं वह उससे भी भयानक है। उस छह वर्षीय बच्ची का रेप किसी वहशी ने नहीं किया है, बल्कि उसके ही स्कूल में पांचवीं में पढ़ने वाले तीन बच्चों ने किया है। स्कूल के ही बाथरूम में इन बच्चों ने उस बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। बच्ची जब घर गई तो उसकी हालत खराब हो गई। उसने अपने परिजनों को स्कूल में हुई घटना बताई। परिजनों ने जब स्कूल के प्रिंसिपल से यह बात बताई तो लोक लाज का भय दिखाकर मामला रफा दफा करने का प्रयास किया गया। बाद में परिजन पुलिस के पास गए। फिलहाल तीनों बच्चों को पुलिस ने गिरफ्तार कर उन्हें किशोर गृह भेज दिया है, जबकि प्राचार्य को भी मामला छिपाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है ।
वहीं दूसरी घटना हरियाणा के सिरसा की है। यहां के एक स्कूल की पहली क्लास में पढ़ने वाले सात साल के बच्चे के खिलाफ पोस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। इस सात साल के बच्चे पर आरोप है कि उसने अपने क्लास में पढ़ने वाली बच्ची के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया है। इस संबंध में महिला थाना पुलिस ने बच्ची की मां की शिकायत पर आरोपी बच्चे के खिलाफ केस दर्ज किया है। बच्ची की मां ने पुलिस को दिए बयान में बताया है कि बच्ची के पेट में दर्द होने पर उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने बताया कि बच्ची से दुष्कर्म की कोशिश की गई है। मां का कहना है कि उसने बेटी से पूछा तो उसने बताया कि उसकी कक्षा का एक बच्चा उसे स्कूल के शौचालय में लेकर गया और उसके साथ गलत हरकतें कीं।
इन दोनों खबरों को पढ़ने के बाद आपके मन में क्या मंथन चल रहा है यह बताने की जरूरत नहीं। जिस व्यक्ति को भी यह खबर मिलेगी वह हैरान रह जाएगा। सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि हम किस समाज में रहने जा रहे हैं। यह खबरें आपको-हमको सभी को पढ़नी चाहिए, क्योंकि यह सिर्फ खबर नहीं, बल्कि हमारी पैरेंटिंग का आइना है।
अगर आप छोटे बच्चे के पैरेंट्स हैं। अगर आपने अपने बच्चे का एडमिशन किसी स्कूल में करवाया है। अगर आप सिर्फ बच्चे को पैदा कर, उसकी जरूरतों को पूरा करने को पैरेंटिंग मानकर चल रहे हैं तो यह आपके लिए खतरे की घंटी है। यह खतरा इतना खतरनाक है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि आप किस भयानक स्थिति का सामना करने वाले हैं। कोई विश्वास नहीं कर सकता कि इतने छोटे बच्चों में यौन प्रवृत्ति कैसे पनप रही है। कोई कल्पना नहीं कर सकता कि यौन प्रवृत्ति से आगे बढ़ते हुए छोटे बच्चे कैसे यौन हिंसा की दिशा में बढ़ रहे हैं। यह दो मामले तो ऐसे हैं जो पुलिस में आने के कारण मीडिया के जरिए आप तक पहुंच रहे हैं। पर जरा मंथन करिए कि कैसे सैकड़ों मामले लोक लाज की भय से घर में ही दफन हो गए होंगे।
भारतीय समाज का ताना बाना एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां पैरेंटिंग को एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है। बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा की घटनाएं हर साल लगातार बढ़ती जा रही हैं। जिस रफ्तार से बाल यौन शोषण बढ़ रहा है उसी रफ्तार से सरकार भी कड़े कानूनों को अमल में ला रही है। हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों ने तो छोटे बच्चों के साथ यौन हिंसा करने वाले वहशियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान तक कर दिया है। पर विडंबना देखिए, जितनी कड़ाई हो रही है, उसी वेग से बच्चों के साथ यौन हिंसा की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि भारत में वर्ष 2001 से 2016 के बीच बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों में 889 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन सोलह सालों में बच्चों के प्रति अपराध 10,814 से बढ़कर 1,06,958 हो गए। जबकि बच्चों के साथ होने वाले यौन हिंसा के आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि इसमें 1705 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2001 में जहां यह आंकड़ा 2,113 था वहीं 2016 में यह आंकड़ा 36,022 हो गया। 2016 में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक देश में घटित हुए बलात्कार के कुल 38,947 अपराधों में 95 प्रतिशत मामलों में अपराध करने वाला व्यक्ति कोई परिचित और करीबी रिश्तेदार ही था।
इन आंकड़ों को बताने का मकसद सिर्फ इतना है कि आप समझ सकें कि कैसे हमारा समाज बदल रहा है। हम विकास के दावे कर रहे हैं। प्रगति के पथ पर अग्रसर होने की बात कर रहे हैं। पर सामाजिक तौर पर हमारा कितना अधिक नैतिक पतन हो रहा है यह समझने और समझाने की जरूरत है। आज के समाज और मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है कि बच्चे और महिलाएं किन पर और किस हद तक विश्वास कर सकती हैं?
बच्चों की सही पैरेंटिंग पर भी मंथन जरूरी है। अगर ऊपर की दोनों खबरों पर ध्यान दें तो इसमें पाएंगे कि इसमें यौन हिंसा का शिकार होने वाले और शिकार करने वाले, दोनों ही बच्चे हैं। ऐसे में पैरेंट्स के रूप में हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। हम छोटे बच्चों को गुड टच और बैड टच बताकर ही अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा नहीं पा सकते हैं। तमाम रिसर्च ने इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि छोटे बच्चों में यौन प्रवृत्ति का विकास काफी जल्दी हो जा रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण टीवी और मोबाइल है। हम बच्चों को कार्टून देखने की छूट तो दे रहे हैं पर यह मॉनिटर नहीं कर पा रहे हैं कि कार्टून का कंटेंट कैसा है। हम बच्चों को गेम खेलने के लिए मोबाइल तो दे रहे हैं पर यह नहीं देख पा रहे हैं हमारा बच्चा किस तरह का गेम खेल रहा है।
टीवी हो या मोबाइल, अश्लील सामग्री की यहां बाढ़ आई हुई है। बच्चों के कार्टून कैरेक्टर इस तरह डिजाइन हैं कि उनमें सैक्सूअल इनपुट अत्यधिक है। तमाम मोबाइल गेम इस तरह से डिजाइन हैं कि वो आपके बच्चे को हिंसात्मक प्रवृत्ति की तरफ धकेल रहे हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि भारतीय समाज का ताना बाना इस तरह से दायरों में बंधा है जहां ज्यादातर शिक्षकों या अभिभावकों को भी यह पता नहीं है कि इन समस्याओं से कैसे निपटा जाए। बच्चों में होने वाली यौन जिज्ञासा को कैसे शांत किया जाए। मौजूदा दौर में नौ से 12 साल के छात्र सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर वर्चुअल डेटिंग का शिकार हो रहे हैं। इस खेल में हाथ पकड़ने से लेकर कमरे में साथ जाने तक के वीडियो मौजूद हैं। कहने को यह एक वीडियो गेम है, पर कब यह आपके बच्चे को यौन हिंसा की तरफ ले कर चला जाएगा आप सोच नहीं सकते। अगर आप नए-नए पैरेंट्स बने हैं तो आपको अत्यधिक सतर्क रहने की जरूरत है। मंथन करें कि आप अपने बच्चों को आधुनिक बनाने के साथ-साथ उनमें नैतिक गुण कैसे विकसित करेंगे। अगर आज आपने मंथन नहीं किया तो आने वाला वक्त आपके सामने और अधिक चुनौती लेकर आने वाला है। संभल जाइए।

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(लेखक आज समाज के संपादक हैं)

 

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