Android phone is bomb and the internet is dynamite! एंड्रायड फोन बम है और इंटरनेट इसका बारूद!

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आज मंथन से पहले एक छोटी सी घटना का जिक्र कर रहा हूं। इसे पढ़िए फिर आगे की बात करेंगे। शनिवार सुबह मेरी सोसाइटी में ही रहने वाले मेरे मित्र अपनी पत्नी के साथ मेरे घर चाय पीने लिए आ गए। घूमने फिरने पर चर्चा होने लगी। उन्होंने कहा कि एक बार अंडमान निकोबार जाने की इच्छा हो रही है। मुझसे वहां के बारे में पूछने लगे। करीब 15 से बीस मिनट तक हम लोगों ने चाय की चुस्की के साथ अंडमान निकोबार के बारे में बातें की। बातों ही बातों में मेरे मित्र के मन में विचार आया कि क्यों न एक बार दिल्ली से अंडमान की फ्लाइट और उसके फेयर के बारे में चेक किया जाए। उन्होंने चर्चा की और अपना सैमसंग का बिल्कुल लेटेस्ट वाला मोबाइल आॅन कर लिया। पर जैसे ही उन्होंने फ्लाइट सर्च का आॅप्शन खोला वो चौंक गए। वो हैरान परेशान थे। उन्होंने कहा भाई साहब ये कैसे हो सकता है कि हम अभी अंडमान के बारे में चर्चा कर रहे हैं और जैसे ही मैंने फ्लाइट आॅप्शन खोला यहां आॅलरेडी दिल्ली टू अंडमान फ्लाइट की डिटेल फ्लैश हो रही है। उन्होंने बताया कि इससे पहले कभी भी उन्होंने दिल्ली टू अंडमान फ्लाइट की डिटेल सर्च नहीं की थी।
मेरे मित्र परेशान थे। पर क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है? क्या आपने कभी गौर किया है कि जिस चीज के बारे में आप कभी सोच रहे हैं, बात कर रहे हैं किसी से उन बातों को शेयर कर रहे हैं, वो अचानक से आपके मोबाइल स्क्रीन पर किसी वेबसाइट को खोलते ही क्यों फ्लैश होने लगता है? क्या कभी इस पर गौर किया है कि एक बार आपने कोई प्रोडक्ट लेने की बात सोची और किसी वेबसाइट पर विजीट कर लिया तो क्यों बार-बार किसी दूसरी वेबसाइट को खोलते ही सबसे पहले वही प्रोडक्ट फ्लैश होने लगता है। अगर अब तक गौर नहीं किया है तो गौर करना शुरू कर दीजिए। मंथन करना शुरू कर दीजिए कि आखिर आपके मन की बात पूरी दुनिया की कंपनी को क्यों पता चल जा रही है। दरअसल आप जितना ही गैजेट फ्रेंडली और टेक्नो फ्रेंडली हो रहे हैं उतना ही अधिक आपकी प्राइवेसी पर खतरा बढ़ता जा रहा है। आपको पता भी नहीं चल रहा है और लाखों वेबसाइट की निगाहें आपके बेडरूम और बाथरूम तक पहुंच जा रही हैं। दो दिन पहले ही अमेरिकी रेग्युलेटर फेडरल ट्रेड कमीशन (एफटीसी) ने डेटा लीक मामले में फेसबुक पर 5 अरब डॉलर (करीब 34 हजार करोड़ रुपए) के जुर्माने की सिफारिश की है। किसी टेक कंपनी पर यह अब तक की सबसे बड़ी पेनल्टी होगी। इससे पहले 2012 में गूगल पर प्राइवेट डेटा लीक मामले में 154 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया था। मार्च 2018 में फेसबुक के डेटा लीक का सबसे बड़ा मामला सामने आया था। एफटीसी ने फेसबुक को यूजर्स के डेटा की प्राइवेसी और सुरक्षा में चूक का दोषी पाया है।
यह मामला इसलिए मीडिया के जरिए हाईलाइटेड है क्योंकि यह मार्क जुगरबर्क और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी से जुड़ा मामला है। पर आप सोचिए आपके एंड्रॉयड फोन में जितने तरह के ऐप हैं वह आपका कितना डाटा चोरी कर रहे हैं। कोई भी नया ऐप अगर आप इंस्टॉल करते हैं तो सबसे पहले वह आपके फोटो, वीडियो, एसएमएस, कैमरा आदि का एक्सेस मांगता है। आपको वह ऐप बताएगा कि अगर आपने एक्सेस परमिशन दिया तो आपको उस ऐप को यूज करने में और अधिक सुविधा होगी। पर क्या आपने कभी मंथन किया है कि अगर किसी होटल की जानकारी वाले ऐप को इंस्टॉल करते हैं तो क्यों वह आपके मोबाइल कैमरे के एक्सेस की परमिशन मांग रहा है। उसे भला क्या मतलब है कि वह आपके कैमरे या फोटो वीडियो की एक्सेस मांगे। पर आप दे दनादन एक्सेस परमिशन दे देते हैं। तमाम तरह के ऐप्स ने निश्चित तौर पर आपके जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन यह आपके जीवन में कितने अंदर तक घुस चुका है इसका आपको अंदाजा भी नहीं है।
मेरे एक सीनियर हैं। वो रोज रात में करीब 12 से 15 किलोमीटर पैदल चलते हैं। उन्होंने अपने मोबाइल में आॅप्शन आॅन कर रखा है कि उनका मोबाइल इसका हिसाब किताब रखे कि वो कितना किलोमीटर चलें। मंथन करिए जरा, वो नाइट वॉक में मोबाइल यूज भी नहीं करते, लेकिन उनके मोबाइल के पास उनके एक-एक कदम का हिसाब है। अगर उन्होंने हेल्थ वॉक से जुड़ा कोई ऐप डाउनलोड कर लिया तो उनके कैलोरी से लेकर उनके ब्लड प्रेशर तक की सटीक जानकारी उनके मिल जाएगी। अब मंथन करिए जरा। सिर्फ मोबाइल अपने पास रखने से आपके हेल्थ और हर एक कदम की जानकारी जब किसी अननोन वेबसाइट के डाटा बेस में सेव हो रही है तो जब आप किसी वेबसाइट या ऐप को अपना सारा एक्सेस दे देते हैं तो वो क्या क्या नहीं कर सकता है आपके फोन के जरिए।
हाल ही में गूगल को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इसमें बताया गया है कि कैसे स्मार्ट फोन, ऐलेक्सा जैसे होम स्पीकर्स और सिक्योरिटी कैमरे में दिए गए गूगल असिस्टेंड आपकी पर्सनल बातों को सुन रहे हैं। वो आपकी बातों को रिकॉर्ड कर रहे हैं और आपकी जरूरतों के अनुसार रिएक्ट कर रहे हैं। मैंने ऊपर अपने दोस्त के साथ अंडमान वाली बात का जो जिक्र किया था वो इसी गुगल असिस्टेंड का परिणाम था। आप मोबाइल पर क्या सुनते हैं, क्या सर्च करते हैं, आपकी जरूरतें क्या क्या हैं, आपने किन बातों के लिए गूगल सर्च किया है, हर बात का रिकॉर्ड गूगल अपने डाटा बेस में सेव करता रहता है। आपकी जरूरतों के मुताबिक जैसे ही आप कोई वेबसाइड एक्सेस करते हैं आपके द्वारा पूर्व में किए गए सारी बातों और रिएक्शन के जरिए आपको उससे संबंधित विज्ञापन दिखाए जाने लगते हैं। तमाम तरह के बैंकिंग ऐप, ई-मेल, यूट्यूब, शॉपिंग ऐप, ट्रैवलिंग ऐप के जरिए आपका मोबाइल फोन एक चलता फिरता बम है और इंटरनेट बारूद के समान है, जो कभी भी फट सकता है। आपके निजी फोटो, वीडियो, बातों की रिकॉर्डिंग कब गलत हाथों में चली जाए आपको पता भी नहीं चलेगा। याद करिए तीन से चार साल पहले जब एंड्रायड फोन का चलन अचानक से बढ़ गया था तो कैसे भारत में पोर्न साइट्स की बाढ़ आ गई थी। हालात यहां तक खराब हो गए थे कि भारत सरकार को हजारों पोर्न साइट्स बंद करनी पड़ी थी। क्या कभी आपने सोचा है कि इन पोर्न साइट्स पर इतने अधिक कंटेंट कहां से पहुंच गए थे। दरअसल वो सब आपके निजी फोन के बेडरूम और बाथरूम कंटेंट थे, जो बड़े मजे से पोर्न साइट्स पर देखे जा रहे थे।
भारत में एक तरफ जहां इंटरनेट यूजर्स की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हो रही है, वहीं उसी रफ्तार में साइबर क्राइम भी बढ़ता जा रहा है। इस वक्त हमारी सरकार का पूरा जोर इंटरनेट यूजर्स को बढ़ाने और हर एक सरकारी व्यवस्था को डिजिटलाइज करने पर लगा है। पर साथ ही साथ मंथन करने का वक्त है कि वर्चुअल वर्ल्ड में हमारा पर्सनल डाटा कितना सुरक्षित है। हमारे भारत में मजबूत डाटा संरक्षण कानून की जरूरत लंबे वक्त से महसूस की जा रही है। पर अफसोस इस बात का है कि इतना लंबा वक्त गुजर जाने पर भी हम डाटा संरक्षण कानून को अब तक मूर्त रूप नहीं दे सके हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, चीन, जर्मनी, आॅस्ट्रेलिया सहित करीब चालीस देशों में मजबूत डाटा संरक्षण कानून मौजूद है। पड़ोसी देश चीन में तो इतना मजबूत कानून है कि वहां ट्विटर जैसा वैश्विक सोशल मीडिया प्लटेफॉर्म तक प्रतिबंधित है। इन देशों ने इसलिए स्थिति पर नियंत्रण पा लिया है क्यों कि इनके पास इंटरनेट और डाटा संरक्षण को लेकर अपने कानून हैं, जबकि भारत में स्थिति विपरीत है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मौजूद समय में भारत में डाटा संरक्षण को लेकर कोई कानून ही नहीं है। न ही कोई संस्था है जो डाटा की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करती हो। हां इतना जरूर है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 43-ए के तहत डाटा संरक्षण के लिए उचित दिशा निर्देश दिए गए हैं। पर ये निर्देश सिर्फ कागजों तक ही सीमित माने जाते हैं।
केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले दिनों राज्यसभा में बताया है कि भारत में डाटा संरक्षण कानून को लेकर अभी मंथन चल रहा है। यह अर्लामिंग सिचुएशन है। सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को इन मुद्दों पर कठघरे में खड़ा कर चुकी है। कई बार सवाल पूछे जा चुके हैं। पर अब तक डाटा संरक्षण कानून को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत सरकार जल्द ही इस संबंध में आगे बढ़ेगी। फिलहाल अपनी सुरक्षा आपके अपने हाथों के भरोसे ही है। इंटरनेट को लेकर, अपने एंड्रायड फोन को लेकर, तमाम तरह के ऐप्स को लेकर मंथन करें। जागरूक बनें और खुद को बचाएं।
कुणाल वर्मा
(लेखक आज समाज के संपादक हैं )
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