मोदी पार्ट-2.0 में एनडीए के घटकों को कितनी अहमियत?

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राजीव रंजन तिवारी
राजनीति शब्द सुनने में जितना पावन व पवित्र प्रतीत होता है, उसकी प्रक्रियाएं उतनी ही गंदी और जटिल होती हैं। मौजूदा दौर की सियासत में शूचिता नाम की कोई चीज तो दिखती नहीं। कोई प्रगाढ़ मित्र अचानक दुश्मन बन जाए और कोई पुराना दुश्मन अचानक मित्र बन जाए, यह राजनीति में ही संभव है। दिलचस्प यह भी है कि जबतक कुर्सी यानी सत्ता नहीं मिली रहती है तबतक तो राजनीतिक मित्रों से इस तरह की मित्रता दिखाई जाती है, मानों वह अटूट बंधन है। कभी खत्म ही नहीं होगा। कभी यह रिश्ता टुटेगा ही नहीं। पर, ज्यों सत्ता मिलती है, सारी मर्यादाएं ताक पर रखकर अपने-अपनों को रेवड़ी बांटने का सिलसिला आरंभ हो जाता है। कुछ इसी तरह का खेल भाजपा नीत एनडीए सरकार में भी देखने को मिल रहा है। प्रसंगवश केन्द्र की मोदी-2.0 और राज्यों की भाजपा सरकारों में उसकी सहयोगी दलों को मिलने वाली अहमियत पर चर्चा छिड़ने लगी है। कहा जा रहा है कि सरकारें एनडीए के घटक दलों से दूरी बनाने लगी हैं। हालांकि राजनीति को गहराई से समझने वालों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं दिख रहा है। राजनीति में मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं वाली बात बहुत आसानी से संभव लगता है। ताजा उदाहरण अनुप्रिया पटेल हैं। मोदी की पहली सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहीं अनुप्रिया और उनकी पार्टी को इस बार किनारे कर दिया गया। हालांकि वे अब भी एनडीए में हैं। केन्द्र की तो बात छोड़िए, यूपी के मंत्रिमंडल विस्तार में भी उनकी पार्टी को कुछ नहीं मिला। कहा जा रहा है कि अब वे नाराज हैं।
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह न मिलने के बाद अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल को दूसरा बड़ा झटका लगा। दरअसल, कयास यह लगाए जा रहे थे कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में उनके पति व एमएलसी आशीष पटेल को जगह मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में मिर्जापुर जिले से बीजेपी विधायक रमाशंकर पटेल को मंत्री बनाया गया। बता दें कि मिर्जापुर अनुप्रिया का गढ़ है और वे वहां से दूसरी बार सांसद बनी हैं। भाजपा संगठन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि रमाशंकर पटेल का पद पार्टी ने इसलिए बढ़ाया ताकि पूर्वांचल में कुर्मी वोट बैंक को अपने दम पर मजबूत किया जा सके। बता दें कि हाल ही में स्वतंत्र देव सिंह को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। मिर्जापुर के रहने वाले स्वतंत्र देव सिंह कुर्मी समाज के बड़े नेता हैं। दरअसल, लोकसभा चुनाव से पहले अनुप्रिया व उनके पति आशीष ने कई मुद्दों को लेकर बीजेपी से असहमति जताई थी। खबरें यह भी आई थी कि बीजेपी से नाराजगी के चलते चुनाव से पहले अनुप्रिया ने कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी से भी संपर्क साधा था।
इससे बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व उनसे नाराज भी हो गया था। गौरतलब है कि अपना दल (एस) के यूपी में 2 सांसद और 9 विधायक हैं। यूं कहें कि एनडीए के घटक दलों के साथ भाजपा सरकार में अब कुछ इसी तरह का व्यवहार होने लगा है, जिसकी उम्मीद राजनीति में लोगों को रहती है। वैसे अनुप्रिया पटेल का यह पहला मामला नहीं है। केन्द्र में मोदी-2.0 बनने के बाद से ही एनडीए के घटकों में कुछ खींचतान जैसे हालात दिख मिल रहे हैं।
नरेंद्र मोदी 2.0 के साथ ही विवादों की शुरूआत हो चुकी है। कुछ उदाहरण देखिए। बगावत के सुर जहां एकतरफ बिहार से बुलंद हुए हैं तो वहीं यूपी में अनुप्रिया पटेल भी मोदी सरकार से खफा है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली नई सरकार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू शामिल नहीं हुई। हालांकि, वह एनडीए का हिस्सा बनी रहेगी। बात अगर सीटों की हो तो 2019 के लोकसभा चुनावों में नीतीश की पार्टी जेडीयू ने 16 सीटें पर अपना कब्जा जमाया था। मोदी 2.0 से नाराजगी छुपाते हुए जेडीयू ने साफ कह दिया कि वह एनडीए का हिस्सा तो रहेगी, मगर सरकार का नहीं। बता दें कि केन्द्र में सरकार बनने से पहले पीएम आवास पर जब बैठक हो रही थी तो उसमें जेडीयू का कोई नेता नहीं पहुंचा। जब इस बारे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल हुआ तो मीडिया से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा कि जदयू सरकार में शामिल नहीं होगी। भाजपा के प्रस्ताव पर पार्टी में सहमति नहीं बनी। इसलिए हम गठबंधन में बने रहेंगे। न हम नाराज हैं और न ही असंतुष्ट। नीतीश ने भी कहा कि हमारी पार्टी के सभी सासंदों का कहना है कि हम सरकार में शामिल नहीं होंगे। यह जरूरी नहीं कि जदयू सरकार में शामिल हो ही। हम सरकार में शामिल नहीं हो रहे, मगर एनडीए में रहेंगे। हम पूरी मजबूती से एक साथ है। कोई मजबूरी नहीं है। हम बिना तकलीफ के सरकार से बाहर हैं। चूंकि बिहार में जेडीयू 16 सीटें जीती थी इसलिए नीतीश चाह रहे थे कि यहां दो लोगों को कैबिनेट मंत्री बनाया जाए और एक को राज्य मंत्री।
नीतीश का मानना था कि यदि मोदी सरकार ऐसा करती है तो इसका सीधा असर बिहार की राजनीति में भी देखने को मिलेगा। क्योंकि इस मांग पर सहमती नहीं बन पाई है तो अब माना यही जा रहा है कि इसके बाद भाजपा और जेडीयू के रिश्तों में तल्खी देखने को मिल सकती है। मामला कितना गंभीर हो चुका है इसे जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी की उस बात से भी समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने मोदी सरकार के इस फैसले को बिहार चुनावों से जोड़ा। केसी त्यागी के अनुसार जल्द ही बिहार में चुनाव हैं और जैसा बिहार की राजनीति का जाति को लेकर माहौल है, मोदी सरकार को अपने इस फैसले आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है। ध्यान रहे कि बिहार से ही 6 सीटों पर जीत दर्ज करने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया राम विलास पासवान को मोदी 2.0 ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है। मोदी सरकार द्वारा इस फैसले के बाद जेडीयू की तरफ से एक तर्क ये भी आया था कि बिहार के मद्देनजर मोदी सरकार इंसाफ करने में नाकाम रही है। गौरतलब है कि मोदी 2.0 में बिहार से लोक जनशक्ति पार्टी से 6 सीटें जीतने वाले राम विलास पासवान, पंजाब में 2 सीटें जीतने वाली शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल और 18 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली शिवसेना के अरविंद सावंत को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है जबकि रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया के रामदास आठवले को राज्यमंत्री बनाया गया।
जैसा की पहले बता चुके हैं मोदी की इस दूसरी पारी से जहां कई चेहरों पर खुशी है तो वहीं कुछ जगहों पर मातम भी पसरा है। उत्तर प्रदेश में 2 सीटें जीतने वाली अपना दल की अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार से खासी नाराज हैं। जेडीयू की ही तरह अपना दल (एस) ने भी कैबिनेट में नहीं शामिल होने का फैसला किया है। पीएम मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान अनुप्रिया पटेल को केंद्र सरकार में मंत्री पद दिया गया था। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने इस लोकसभा चुनाव में 2 सीटों पर जीत हासिल की है। पार्टी अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से तो वहीं रॉबर्ट्संगज से पकौड़ी लाल जीत हासिल कर संसद पहुंचे।
इसी तरह तमिलनाडु में एनडीए में पार्टनर एआईएडीएमके नेता ओ पन्नीरसेलवम के बेटे ओपी रविंद्रनाथ कुमार का मोदी कैबिनेट में शामिल होना था। मगर वहां भी आपसी विवाद के चलते मंत्री पद किसी को नहीं मिला। पन्नीरसेलवम के बेटे की दावेदारी पर तो तमिलनाडु के मुख्य मंत्री ई. पलानीसामी ने ही अड़ंगा लगा दिया। नए मंत्रिमंडल के मद्देनजर जो फैसले पीएम मोदी ने लिए, उससे माना यही जा रहा है कि इसका असर एनडीए में देखने को मिलेगा। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कई लोगों को उम्मीद थी कि वो मंत्री बनेंगे मगर ऐसा हो न सका। बहरहाल, जदयू, शिवसेना के बाद अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल के साथ जिस तरह का सियासी व्यवहार हुआ है, उसे देख यही कहा जा सकता है कि एनडीए में अब घटकों की अहमियत घट रही है।
(लेखक आज समाज के समाचार संपादक हैं)
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