छोटी बातें छोड़कर अर्थव्यवस्था पर चिंतन कीजिए

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पल्स : अजय शुक्ल

छोटी बातें छोड़कर अर्थव्यवस्था पर चिंतन कीजिए

हाल के दिनों में हम एक गांव में गये, वहां इंजीनियरिंग की डिग्री किये तीन युवक मिले। हमने पूछा क्या कर रहे हैं? उनका जवाब सुनकर हम सन्न रह गये, बोले व्हाट्सएप्प व्हाट्सएप्प खेल रहे हैं। नौकरी मिल नहीं रही। वीजा के लिए प्रयास कर रहे हैं, एजेंट यूरोपियन और अमेरिकन देशों के लिए एक करोड़ मांग रहा है। खेत बेचने को लगाया है मगर उसकी भी सही कीमत नहीं मिल रही क्योंकि खरीददार कम हैं। एमबीए (वित्त) करके बेरोजगार बैठे एक युवक ने कहा कि आप लोग नेताओं के तलवे चाटते रहते हो, सच क्यों नहीं बताते। देश की अर्थव्यवस्था क्यों खराब हुई है, इस पर चर्चा क्यों नहीं करते? जब उद्योग-धंधों को मुफीद माहौल नहीं मिलेगा तो वो उत्पादन क्यों करेंगे? उत्पादन नहीं होगा तो रोजगार नहीं होगा। सब एक दूसरे से जुड़े हैं। जितना पैसा खर्च करके हमने पढ़ाई की, उससे भी कम खर्च करके कोई ढाबा खोल लेते तो अधिक कमा लेते। सरकार सिर्फ बातें बनाने में व्यस्त है। उसे बड़ा सोचना चाहिए तो वह विरोधियों को खत्म करने में सारी उर्जा लगा रही है और दोष पूर्ववर्ती सरकारों पर मढ़ रहे हैं। इन हालात में अर्थव्यवस्था क्या, सभी कुछ गड़बड़ाना स्वाभाविक है। इस बेरोजगार स्किल्ड युवक की बात सुनकर हम भी सोच में पड़ गये। हमें याद आया कि देश में अर्थव्यवस्था को पटरी से उतरते देख उद्योग संघ एसोचैम ने सरकार से एक लाख स्टिम्युलस पैकेज की मांग की है। कुछ उद्योगपतियों से चर्चा हुई तो हालात डरावने लगने लगे।

हम अपने कुछ अफसर मित्रों से मिलने संसद भवन गये, वहां देश-दुनिया पर लंबी चर्चा हुई। भारतीय लचर अर्थव्यवस्था पर चर्चा में डॊलर का जिक्र आया तो पता चला कि वह 72 रुपये का हो गया है। हमें श्रीश्री रविशंकर का 21 मार्च 2014 का वह ट्वीट याद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी सत्ता में आये तो डॊलर 40 रुपये का होगा। उस दिन डॊलर 60 रुपये का था। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार से विकास योजनाओं पर चर्चा हुई तो उन्होंने अर्थव्यवस्था को लेकर जो बताया, वह सुनकर ही डरावना लगा। उनके पास से निकलते ही हमने अपने वित्तीय सलाहकार को फोन कर पूछा कि क्यों न यूलिप पॊलिसी में जमा पैसा निकाल लिया जाये। यह हमारा अपनी छोटी सी पूंजी को लेकर डर था। हमारा डर अस्वाभाविक नहीं है। देश की अर्थव्यवस्था जिन नीतियों और व्यवस्था पर निर्भर होती है, वहां तमाम खामियां हैं, जिससे भविष्य खतरे में नजर आता है। ऐसा क्यों हुआ? जवाब में नोटबंदी, जीएसटी से लेकर तमाम वो नीतियां सामने आ गईं, जिन्हें बेहतरीन आर्थिक सुधार बताया गया।

घरेलू अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि की गति सुस्त होने के कारण रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रमुख नीतिगत दर रेपो में पहली बार 0.35 फीसदी की कटौती की। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए इस बार लीक से हटकर यह कदम उठाना पड़ा है। शुक्रवार को वित्त मंत्री सीतारमण ने भी लघु एवं मध्यम उद्योगों से लेकर तमाम व्यवसायियों को रियायतें देने की घोषणा की। उनका मानना है कि इन रियायतों के बाद अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी। इस वित्तीय वर्ष का बजट एक माह पहले ही संसद से पास हुआ है, तो फिर अचानक नई व्यवस्थायें करने की जरूरत क्यों पड़ गई? घोषणाओं से स्पष्ट है कि कुछ खामियों और फैसलों ने अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। दिन पर दिन खराब होती अर्थव्यवस्था का एक बड़ा कारण उत्पादन क्षेत्रों की टूटी कमर है। तमाम उद्योगों ने कटौती करने का फैसला कर लिया। इस कटौती में मैनपावर से लेकर तमाम अन्य खर्चे भी शामिल हैं। उद्योगपति और व्यवसायी कर्ज में डूबे हैं। वो हर तरह से बचत करना चाहते हैं। बाजार से खरीददार ही गायब है। इससे उत्पादन में भारी गिरावट आई है, जिससे रोजगार पर संकट खड़ा हो गया है। हम सरकार की नियत पर सवाल नहीं उठा रहे मगर यह जरूर मानते हैं कि उसकी प्राथमिकताएं सही नहीं हैं। विरोधी दलों के नेताओं और उनको खत्म करने की जुगत में सत्ता पर काबिज लोग यह भूल गये कि उनका मूल काम क्या है।

जमशेदपुर में टाटा जैसे औद्योगिक समूह का उत्पादन इतना गिरा है कि उसे कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ रही है। बिड़ला ने अपने कई उत्पादनों को दूसरे अन्य समूहों को बेच दिया, जिससे उसके कर्मचारियों की छंटनी हो गई। बाजार में नकदी का भारी संकट है, जिसका असर सभी तरह के उद्योगों के साथ ही सेवा व्यवसाय पर भी पड़ा है। हाल के दिनों में उत्तर भारतीय कपड़ा मिल एसोसिएशन ने विज्ञापन छपवाकर बताने की कोशिश की, कि वो गंभीर हालात से गुजर रहे हैं। सरकार उनपर ध्यान दे। भारतीय चाय उद्योग ने भी विज्ञापन देकर अपने संकट को सार्वजनिक किया। पिछले तिमाही में आटो उद्योग इतना संकट में आया कि उसको दो लाख कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी और पांच लाख लोगों का रोजगार संकट में है। टेलीकॊम, एयरलाइंस सेक्टर और आईटी उद्योग भी दिन पर दिन संकटों में फंसता जा रहा है। आटो उद्योगपति राहुल बजाज ने कहा कि ऐसी बुरी हालत कभी नहीं हुई। विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार के ऊंचाई पर आते ही खुद को भारत के निवेश से अलग कर लिया। यह स्थिति सिर्फ निजी उद्योगों की ही नहीं है बल्कि सार्वजनिक उद्योगों की भी है।
भारत सरकार ने खराब वित्तीय हालत का बहाना लेकर आयुध फैक्ट्रियों के निगमीकरण का प्रस्ताव पास कर दिया। विरोध में ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के तीन मजदूर संघों ने कहा कि असल में सरकार फैक्ट्रियों का निजीकरण करने की तैयारी में है। 41 फैक्ट्रियों के 82 हजार कर्मचारियों ने इसके खिलाफ हड़ताल की। बीएसएनएल के कर्मचारी वेतन को लेकर परेशान हैं। पारले बिस्कुट कंपनी ने अपने 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करने का फैसला किया है। मारुति सुजुकी ने अपने तीन हजार से अधिक आस्थायी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। नये उद्योगों के लिए निवेश नहीं आ रहा। विदेशी निवेश लगातार घट रहा है। सिर्फ जुलाई माह में साढ़े आठ हजार करोड़ का विदेशी निवेश भारत से चला गया। अच्छा हुआ कि वित्त मंत्री ने शुक्रवार को तमाम सवालों के जवाब दिये और राहतों का एलान भी किया। उन्होंने बैंकिंग सेक्टर को भी 70 हजार करोड़ देने की बात करके नकदी संकट से बचाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है। हालात ठीक हों और रोजगार के अवसर बढ़ें, इसके लिए बड़े कदम उठाने की जरूरत है, न कि राहत के टुकड़े डालने की।
सरकार के नीति नियंताओं को छोटी-छोटी बातों को नजरांदाज करके, बड़ी योजनाओं पर काम करने की जरूरत है। समृद्धि के लिए आवाम के बीच अमन, चैन और विश्वास बनाना आवश्यक है। उद्योग-व्यवसाय को मजबूत बनाने के लिए भयमुक्त सुरक्षित माहौल बनाने की जरूरत है। यह तब बनेगा जब विरोधियों से लेकर समर्थकों तक को इसका अहसास हो। देश सर्वोपरि है। वह उस क्षेत्र के नागरिकों से बनता है सिर्फ भूभाग से नहीं। हमारे सत्ता प्रतिष्ठान जब तक देशवासियों के हित में सोचते और करते हैं, तब तक सब अच्छा होता है। जब किसी खौफ या लालच में लोग सत्ता और संस्था से जुड़ते हैं, तो उसकी उम्र छोटी होती है। ऐसे लोग गुणगान में ही व्यस्त रहते हैं, वो कभी सत्ता और संस्था की कमियां नहीं बताते। उसकी गलतियों पर भी तालियां पीटते हैं। ऐसा न हो, इसके लिए सरकार को विधि-व्यवस्था आधारित सत्ता स्थापित करनी चाहिए। मकसद किसी का उत्पीड़न न हो बल्कि सबकी उन्नति हो। इतिहास साक्षी है, जब भी पक्षपाती और डरावनी व्यवस्थायें स्थापित करने की कोशिश हुई, विकार उत्पन्न हुआ है। इस विकार में सबकुछ नष्ट होने लगता है। सत्ता प्रतिष्ठान जब “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” की नीति पर काम करेगा, विकास और समृद्धि आना तय है। आवश्यकता मैत्रीपूर्ण पारदर्शी और लचीली नीतियां बनाने की जरूरत है, जो जनमुखी हों। सार्थक और सकारात्मक चिंतन-मनन और सवाल होने चाहिए, न कि नकारात्मक क्रिया कलाप।

 

जयहिंद
ajay.shukla@itvnetwork.com
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

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